SC के 100 में से 70 रिटायर्ड जजों ने सेवानिवृत्ति के बाद स्वीकारे पद ,जजों की पुनर्नियुक्ति का मामला चर्चाओं में

नई दिल्ली,सुप्रीम कोर्ट के जजों में सेवानिवृत्ति के बाद केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न पद स्वीकार किए जाने से न्यायाधीशों की कार्यप्रणाली और निष्पक्षता को लेकर अब सवाल उठने लगे हैं।
3 माह पूर्व सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों ने पत्रकार वार्ता आयोजित कर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को लेकर न्यायालीन कार्य प्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगाया था। तीनों न्यायाधीश ने यह भी कहा था कि वह सेवानिवृत्त होने के बाद सरकार का कोई भी पद स्वीकार नहीं करेंगे।
इस संबंध में कानूनी मामलों की थिंक टैंक संस्था विधि सेंटर वार्ड लीगल पॉलिसी की एक रिपोर्ट सामने आई है। इस रिपोर्ट में 1950 से 2016 तक सुप्रीम कोर्ट के 100 में से 70 जजों ने सेवानिवृत्ति के बाद सरकार द्वारा सृजित पदों पर काम किया है। इसमें 44 सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस शामिल हैं।
चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के बाद यह मामला और तूल पकड़ रहा है। पिछले कई वर्षों में न्यायालीन कार्य प्रणाली में सरकार का जिस तरह हस्तक्षेप बढ़ रहा है। न्यायालीन आदेशों में जिस तरह से सरकार का पक्ष न्यायालय द्वारा अन्य पक्षकार के मुकाबले ज्यादा लिया जा रहा है। इससे न्यायपालिका की निष्पक्षता और कार्यप्रणाली को लेकर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं। राज्यों में भी कुछ इसी तरह की स्थिति देखने को मिल रही है। हालांकि से अभी तक डिटेल जानकारी प्राप्त नहीं हुई है। लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद जजों की पुनर्नियुक्ति को लेकर सारे देश में न्यायपालिका की निष्पक्षता को लेकर बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं।

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