नई दिल्ली,अगर आपकी सोच बेकाबू हो रही है और चाहकर भी आप गुस्से को कंट्रोल नहीं कर पा रहे हैं तो तुरंत अपने डॉक्टर से मिलें,क्योंकि 90 प्रतिशत तक हाई बीपी के मरीजों में लक्षण नहीं दिखते। अक्टूबर 2015 से सितंबर 2017 के बीच शहर के प्रमुख अस्पतालों में 5.59 लाख मरीज आए जिसमें से 1.74 लाख यानी करीब 31 प्रतिशत मरीज मानसिक समस्याओं से परेशान थे जबकि 1.27 लाख यानी 23 प्रतिशत मरीज हाई बीपी से परेशान थे। विशेषज्ञों ने बताया कि लाइफस्टाइल में बदलाव और जिंदगी में बढ़ते दबाव के कारण लोगों में ये दो समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ.अनिल शर्मा ने कहा कि हाई बीपी लाइफस्टाइल आधारित बीमारी है। आज के समय में हर तीसरे व्यक्ति में यह समस्या है। हालांकि दुर्भाग्यवश समय पर इसकी पहचान ही नहीं हो पाती। बढ़ते तनाव और खाने में अधिक नमक,तेल,मसालों के इस्तेमाल के कारण लोगों में यह समस्या बढ़ रही है। समय पर ध्यान न देने से स्थिति काफी बिगड़ सकती है। हाई बीपी मुख्य रूप से दिल,दिमाग और किडनी को प्रभावित करता है।
मानसिक समस्याओं से जूझने वाले मरीजों में अवसाद की समस्या सबसे आम है। मनोरोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ.नीलेश शाह ने बताया कि अस्पताल की ओपीडी में रोजाना 200 मरीज आते हैं। इसमें से ज्यादातर मामले अवसाद और एंग्जाइटी के होते हैं। हमारे दिमाग के अंदर सीरोटोनिम नाम का एक केमिकल होता है,जब उसकी मात्रा कम होती है,तो लोगों में अवसाद की समस्या होती है। हालांकि यह क्यों कम होता है यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता। बड़ों में जहां अवसाद और एंग्जाइटी बड़ी समस्या है।