नई दिल्ली,पिछले कई दिनों से देश में सुप्रीम कोर्ट के कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई ) सर्वोच्च संवैधानिक अधिकारी हैं और किस बेंच को कौन सा केस दिया जाए ये उनका विशेषाधिकार है। सुप्रीम कोर्ट में केस बंटवारे को लेकर नए नियम बनाने से संबंधित जनहित याचिका दाखिल की गई थी, जिस खारिज करते हुए कोर्ट ने बातें कही। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा,जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने ये याचिका खारिज की। याचिका में मांग की गई थी कि चीफ जस्टिस को दो दूसरे सीनियर जजों के साथ कोर्ट में बैठना चाहिए और उनकी सलाह से केसों का बंटवारा करना चाहिए। याचिकाकर्ता की दलील थी कि इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के कामकाज में ज्यादा पारदर्शिता आएगी। न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने फैसले में लिखा, सीजेआई सर्वोच्च संवैधानिक अधिकारी हैं और केस आवंटन उनका विशेषाधिकार है। चीफ जस्टिस एक संवैधानिक पद है और उनके अधिकार और जिम्मेदारी में कोई छेड़छाड़ नहीं हो सकती है।
तब मचा था बवाल
12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने पत्रकार वार्ता की थी। इसमें मुख्य जज के बाद दूसरे नंबर के सीनियर जज जस्टिस जे चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ शामिल हुए थे। जस्टिस चेलमेश्वर ने मुख्य जज दीपक मिश्रा के तौर-तरीकों पर सवाल उठाए हुए कहा था कि लोकतंत्र दांव पर है। ठीक नहीं किया तो सब खत्म हो जाएगा। उन्होंने चीफ जस्टिस को दो महीने पहले लिखा 7 पेज का पत्र भी जारी किया था। इसमें आरोप लगाया गया था कि चीफ जस्टिस पसंद की बेंचों में केस भेजते हैं। शीर्ष अदालत के इतिहास में यह पहला मौका था जब इसके जजों ने मीडिया के सामने सुप्रीम कोर्ट के सिस्टम पर सवाल उठाए थे।
इसके बाद दायर की याचिका
जजों के आरोपों के बाद अशोक पांडे ने पीआईएल दाखिल की थी।
विवाद के बाद किया गया बदलाव
पे्रस वार्ता के बाद मुख्य जज दीपक मिश्रा ने फरवरी में काम के बंटवारे का रोस्टर जारी किया था। इसमें तय किया था कि कौन से जज के पास किस विषय के केस जाएंगे। इसके तहत सभी जनहित याचिकाओं पर सिर्फ चीफ जस्टिस की बेंच ही सुनवाई करेगी और संविधान पीठ में जज भी वही तय करेंगे।
आरोप लगने के पहले यह सिस्टम था
चार जजों के आरोप लगाने के पहले मुख्य जज की सलाह से रजिस्ट्री केस बांटती थी। सिर्फ चीफ जस्टिस ही जानते थे कि किसके पास कैसे मामले हैं? वे अपनी मर्जी से किसी के भी पास जनहित याचिका भेज सकते थे।
इन जजों ने लगाये थे आरोप
जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस जे चेलमेश्वर, जस्टिस जोसफ कुरियन और जस्टिस मदन बी लोकुर ने केस के बंटवारे में भेदभाव का आरोप लगाया था।
इन जजों की पीठ ने की सुनवाई
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने जनहित याचिका खारिज की।
”सीजेआई सर्वोच्च संवैधानिक अधिकारी हैं और केस आवंटन उनका विशेषाधिकार है। चीफ जस्टिस एक संवैधानिक पद है और उनके अधिकार और जिम्मेदारी में कोई छेड़छाड़ नहीं हो सकती है। संविधान के तहत सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही चलाने के लिए सीजेआई के कामों को लेकर अविश्वास नहीं किया जा सकता।ÓÓ
-न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने फैसले में लिखा