लंदन , ग्लोबल वार्मिंग से हो रहे जलवायु परिवर्तन को अगर समय पर न रोका गया तो जीवनदायिनी गंगा बाढ़ और तबाही ले आएगी। वहीं दुनिया में अन्न के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने से भुखमरी की समस्या विकराल हो जाएगी। यह दावा ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ एक्जीटर के शोधकर्ताओं ने किया है। उनकी रिपोर्ट के मुताबिक दो डिग्री तापमान बढ़ने पर गंगा का बहाव दोगुना हो जाएगा। धारा में आने वाले खेत-खलिहान नष्ट हो जाएंगे। जलवायु परिवर्तन के चलते दुनियाभर में कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ आने से भोजन की भारी कमी होने की आशंका है। 122 विकासशील और अल्प विकसित देशों पर हुआ यह शोध फिलॉसाफिकल ट्रांसेक्शन ऑफ द रॉयल सोसाइटी जर्नल में प्रकाशित हुआ है। जलवायु परिवर्तन से दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग प्रभाव देखने को मिलेगा। कहीं अत्यधिक बाढ़ आएगी तो कहीं भीषण सूखा पड़ेगा। अनियमित मौसम के चलते साफ पानी की उपलब्धता अभी के मुकाबले कहीं बड़ी चुनौती बन जाएगी। बड़ी आबादी के लिए पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक अन्न उगाना मुश्किल होगा। अभी दुनिया के तकरीबन 8 करोड़ लोगों को नियमित भोजन नसीब नहीं होता है। आगे स्थिति और खराब हो सकती है। बाढ़ व जलप्लावन का प्रभाव दक्षिण व पूर्वी एशिया में देखा जाएगा। सूखे के कारण दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे, जहां अमेजन नदी का बहाव 25 फीसदी तक कम होने की आशंका है। शोधकर्ताओं ने समुद्री सतह के तापमान और समुद्री बर्फ के पैटर्न पर आधारित ग्लोबल मॉडल के इस्तेमाल से 122 देशों का अध्ययन किया, जिनमें से अधिकतर एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में हैं। गंगा के किनारे पर बसे प्रमुख शहरों में उत्तराखंड में ऋषीकेश, हरिद्वार, रुड़की, उत्तरप्रदेश में बिजनौर, नरोरा, कन्नौज, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, मिर्जापुर, बिहार में पटना और भागलपुर, पश्चिम बंगाल में बहरामपुर, श्रीरामपुर, हाबड़ा और कोलकाता हैं। ये सभी शहर प्रभावित होंगे। अगर पेरिस जलवायु समझौते के तहत ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री तक रोका जा सकेगा तो स्थिति कुछ नियंत्रण में रहेगी। लेकिन अगर इस सदी के अंत तक तापमान वृद्धि दो डिग्री हो जाती है तो तकरीबन 76 फीसदी विकासशील देश गंभीर परिस्थितियों का सामना करने को मजबूर होंगे।