कर्नाटक में तीन बड़े दलों कांग्रेस,भाजपा और जेडीएस में हैं चुनावी घमासान

बेंगलुरु,कर्नाटक में विधानसभा चुनाव की तारीख का ऐलान हो गया है। यहां तीन बड़ी पार्टियां, बीजेपी, कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर चुनाव मैदान में हैं। 12 मई को राज्य की 224 सीटों पर मतदान होगा। नतीजे 15 मई को आएंगे। जानने की कोशिश करते हैं कि यहां के तीन प्रमुख दलों की क्या है ताकत और क्या है कमजोरी। यदि बात कांग्रेस की ताकत और कमजोरियों की करें तो मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने राज्य में अन्न भाग्य, आरोग्य भाग्य, क्षेत्र भाग्य और इंदिरा कैंटीन जैसी योजनाएं प्रारंभ की हैं, जिनका फायदा जनता को मिल रहा है। सिद्धारमैया राज्य में एक नई राजनीति की शुरुआत की और दलितों, पिछड़ों और मुस्लिमों को कांग्रेस से जोड़ा है। हाल ही में उन्होंने लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा दे दिया है। इधर, कांग्रेस ने सीएम और पार्टी का नेता सबकी पसंद से चुना। यह कांग्रेस की ताकत है। लेकिन उसकी कुछ कमजोरियां भी हैं। मसलन- योजनाओं के प्रचार-प्रसार को लेकर सरकार और पार्टी के बीच तालमेल की कमी है। बड़े नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दर्ज हैं। कांग्रेस के अंदर गुटबाजी है। चुनाव में पूर्व पीएम एचडी देवगौड़ा की मौजूदगी कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकती है। सिद्धारमैया पर बीजेपी तुष्टीकरण के आरोप लगा रही है। अगर इन सभी आरोपों से निपटने की रणनीति नहीं बनाई गई तो नुकसान हो सकता है।
बात बीजेपी की ताकत और कमजोरियों की करें तो पार्टी ने बीएस येदियुरप्पा को सीएम उम्मीदवार के तौर पर पेश कर अपने कार्यकर्ताओं को एकजुट किया है। चूंकि येदियुरप्पा लिंगायत हैं, इसलिए सिद्धारमैया की लिंगायत समुदाय को लुभाने की कोशिश के बावजूद यह तबका बीजेपी के साथ जा सकता है। मोदी अब भी लोकप्रिय हैं। लेकिन बीजेपी की बड़ी
कमजोरी यह है कि येदियुरप्पा पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। पार्टी येदियुरप्पा और केएस ईश्वरप्पा के गुटों में बंटी हुई है। दोनों ही नेता शिवामोगा जिले के हैं। देवगौड़ा बीजेपी का भी खेल खराब करेंगे। कर्नाटक में तीसरी खिलाड़ी जेडीएस है। अगर उसकी ताकत की बात करें तो मध्यम वर्ग में एचडी कुमारस्वामी की लोकप्रियता बरकरार है। बीएसपी और वामदलों के साथ पार्टी का गठबंधन है। तेलुगू सुपरस्टार पवन कल्याण जेडीएस का प्रचार कर सकते हैं। लेकिन उसकी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि जेडीएस को पिता-पुत्र की पार्टी माना जाता है। पार्टी का आधार भी एक खास इलाके तक है, न कि पूरे कर्नाटक में। जेडीएस के पास संसाधनों की भी कमी है।

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