भोपाल,राज्य सरकार टीबी की बीमारी को जड समेत उखाड फैंकने को लेकर कटिबघ्द है। इसके लिए कई सख्त प्रावधान किए गए हैं। नए प्रावधान के तहत मेडिकल स्टोर संचालक ने टीबी मरीज की जानकारी ऑनलाइन निश्चय पोर्टल पर नहीं दी तो उसे भी छह महीने की सजा हो सकती है। उन्हें एक अलग रजिस्टर में भी मरीज का पूरा ब्यौरा व दी गई दवा का हिसाब लिखना होगा। मेडिकल स्टोर संचालक इससे डरे हुए हैं। कार्यशाला में उन्होंने कहा कि कई मरीज बिना पर्चे के आता है और जबरन दवा मांगता है। ऐसे में उनके पास कोई विकल्प नहीं होता। इस पर औषधि प्रशासन के अफसरों ने साफ कहा कि बिना पर्चा कोई दवा नहीं देना है। हमीदिया अस्पताल के टीबी एवं छाती रोग विभाग के प्रमुख डॉ. लोकेन्द्र दवे ने बताया कि 70 फीसदी मरीज अभी भी निजी डॉक्टर से दवा ले रहे हैं। उनमें ज्यादातर का हिसाब सरकार के पास नहीं है। इन मरीजों को सरकारी सिस्टम में लाना बड़ी चुनौती है।
इस दौरान डब्ल्यूएचओ-आरएनटीसीपी के सलाहकार डॉ. आदर्श पटेल ने कहा कि 2025 तक टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य है, लेकिन इसी रफ्तार से चले तो 2180 तक ही टीबी से मुक्ति मिल सकती है। लिहाजा काम में तेजी लाने की जरूरत है। टीबी को हराने के लिए मरीजों को अब ऐसी दवा खिलाई जाएगी जिसकी एक टैबलेट की कीमत 10 हजार रुपए है। यह दवा उन मरीजों को दी जाएगी जिन पर अहम दवाओं का असर नहीं हो रहा है। ऐसे मरीजों को एक्सडीआर (एक्सट्रीम ड्रग रजिस्टेंट) कहा जाता है। इसके लिए जिला टीबी अधिकारियों को यहां एक होटल में ट्रेनिंग दी गई। बुधवार को फिर ट्रेनिंग होगी। अगले महीने से यह दवा शुरू करने की तैयारी है। इसका एक बड़ा फायदा यह भी होगा कि जिन मरीजों को अभी 2 साल तक दवा खाना पड़ रही थी। अब 11 से 12 महीने में ही उनकी टीबी ठीक होने की उम्मीद है। सोमवार को आयोजित कार्यशाला में कई जिलों के कलेक्टर, जिली टीबी अधिकारी व मेडिकल स्टोर संचालक मौजूद थे। इस दौरान स्टेट टीबी ऑफीसर डॉ. अतुल खराटे ने बताया कि एक्सडीआर मरीजों को विडाकुलीन टैबलेट दी जाएगी। यह 10 हजार रुपए की एक टैबलेट है, लेकिन टीबी मरीजों को मुफ्त में मिलेगी।