जिस अस्पताल में 37 साल सेवा दी उसी में लापरवाही से मौत हुई डिप्टी नर्सिंग सुप्रिंटेंडेंट की

भिलाई,बीएसपी के पं. जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय एवं अनुसंधान केंद्र सेक्टर-9 में 37 साल सेवा देने के बाद मई 2016 में सेवानिवृत्त हुईं डिप्टी नर्सिंग सुप्रिंटेंडेंट केपी नफीसा कादर अपने ही अस्पताल में लापरवाही और उपेक्षा का शिकार होकर असमय मौत के मुंह में चली गई। अस्पताल की भर्राशाही का आलम यह था कि मरीज की कमजोर हालत देख परिजनों के रोकने के बावजूद डायलिसिस के लिय़े भेज दिया गया। जिससे हालत बहुत ज्यादा गंभीर हो गई और डायलिसिस स्टाफ ने आईसीयू के बजाए सीधे वार्ड में लाकर मरीज को बेड पर छोड़ दिया, जहा उचित ईलाज के अभाव मे उनकी मौत हो गई। यहीं नहीं परिजन मरीज को फ्लाइट से इलाज के लिए बाहर ले जाने जरूरी चिकित्सकीय अनुमति के लिए चक्कर लगाते रहे लेकिन मरीज की हालत दिनों दिन बिगडऩे के बावजूद अस्पताल प्रबंधन के जिम्मेदार लोग अनुमति देने अथवा नहीं देने के नाम पर परिजनों को घुमाते रहे। मृतका के परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ अब मामला न्यायालय में दाखिल करने की तैयारी कर ली है।
मृतका केपी नफीसा कादर के पति के ए अब्दुल कादर ने बताया कि उन्हें 5 महीना पहले 5 नवंबर 2017 को अचानक किडनी की बीमारी सामने आई थी। इसके बाद सेक्टर-9 अस्पताल से परामर्श लेकर उन्होंने सीएमसी वेल्लोर में जरूरी चिकित्सकीय परीक्षण करवाया। जिसमें किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत बताई गई। इसके बाद हम लोग डोनर तैयार करने जरूरी बंदोबस्त के लिए भिलाई लौट गए। इस बीच मरीज की तबीयत खाराब हुई तो उन्हें सेक्टर-9 अस्पताल में दाखिल कराया गया।
केए अब्दुल कादर ने बताया कि इस बीच किडनी ट्रांसप्लांट के लिए हमारी केरल के एक हास्पिटल से बात हो चुकी थी और फ्लाइट की टिकट 30 जनवरी के लिए बुक करा ली गई थी। इसी बीच 28 जनवरी को उनकी पत्नी को बैकपेन होने की वजह से अस्पताल लाना पड़ा। इसके बाद एयरपोर्ट अथारिटी ने बगैर डॉक्टर के सर्टिफिकेट के फ्लाइट में मरीज को भेजने पर असमर्थता जता दी। ऐसे में हम लोग सेक्टर-9 अस्पताल से जरूरी अनुमति के लिए विनती करते रहे। लेकिन कोई भी डाक्टर जवाबदारी लेने तैयार नहीं था। मेडिसिन के डा. अशोक कुमार ने नेफ्रालॉजी के डॉ. नशीने पर पूरा मामला टाल दिया तो डॉ. नशीने ने इसे आर्थो के डॉ. बंसल का मामला बता कर पल्ला झाड़ लिया। इसके बाद डाक्टर एक दूसरे पर मामला टालते रहे, इस बीच दो दिन बीत गए और हम मरीज को किडनी ट्रांसप्लांट के लिए केरल नहीं ले जा सके। यहां तक कि बाद में भी हमको फ्लाइट की अनुमति संबंधी प्रमाणपत्र नहीं दिया गया। जिससे हम सारी व्यवस्था के बावजूद केरल नहीं जा सके। इस बीच मरीज की हालत बिगडऩे लगी। लेकिन इलाज में लगातार लापरवाही बरती जा रही थी। यहां तक कि डॉ. नशीने और डॉ. अशोक कुमार का व्यवहार भी बेहद खेदजनक था।
केए अब्दुल कादर ने बताया कि 19 मार्च को सुबह से उनकी पत्नी की कमजोर हालत देखते हुए तो उन्होंने खुद वहां मौजूद पैरामेडिकल स्टाफ से डायलिसिस आज नहीं करने कहा। उस दिन डॉक्टर की ओपीडी भी थी इसलिए हम सभी चाहते थे उस दिन डायलिसिस टाल दिया जाए। लेकिन स्टाफ ने कहा कि शेड्यूल के हिसाब से करना ही पड़ेगा। नहीं तो फिर 4 दिन बाद नंबर आएगा। इस बीच मरीज की हालत बिगडती है तो आप जिमेदार होगे, इसके बाद मरीज को डायलिसिस के लिए स्टाफ ले गया। जहां पर मरीज की गंभीर होती हालत के बावजूद डायलिसिस स्टाफ ने सीधे वार्ड में लाकर बेड पर डाल दिया। जबकि इस वक्त मरीज को आईसीयू में ट्रीटमेंट की आवश्यकता थी। श्री कादर ने बताया कि जब वो शाम 5:30 बजे पहुंचे तो देखा कि वहां न तो डाक्टर है ना ही नर्स। सिर्फ एक ट्रेनी नर्स डूयटी थी, जिसने डॉक्टर को लगातार फोन किया लेकिन डॉक्टर नहीं पहुंचे।
इलाज में लापरवाही के चलते उनकी पत्नी 19 मार्च को शाम 6 बजे चल बसी। श्री कादर ने आरोप लगाया कि यह सीधे-सीधे उनकी पत्नी की हत्या का मामला है। जिसे सेक्टर-9 अस्पताल के लापरवाह स्टाफ ने अंजाम दिया है। उन्होंने बताया कि वे जल्द ही न्यायालय में फरियाद करेगे, जिससे दूसरे किसी मरीज के साथ ऐसा न हो सके।
डायरेक्टर ने दिया जांच का आश्वासन
इस पूरे मुद्दे पर केए अब्दुल कादर ने 23 मार्च को बीएसपी के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के निदेशक प्रभारी डॉ. केएन ठाकुर से मुलाकात की और इलाज में लापरवाही से अवगत कराया। श्री कादर के मुताबिक डॉ. ठाकुर ने आश्वस्त किया है कि अपने ही रिटायर स्टाफ के साथ हुए इस अमानवीय कृत्य की उच्च स्तरीय जांच कराएंगे। के ए अब्दुल कादर ने कहा है कि यदि डॉ. ठाकुर जांच करवा कर जिम्मेदार लोगों को चिह्रिन कर कार्रवाई करते हैं तो यह बीएसपी के लिए अपनी गलती सुधारने का बेहतर अवसर होगा। यदि मामले में लीपापोती की जाती है तो उनके लिए न्यायालय जाने का रास्ता खुला है।

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