छिंदवाड़ा,दस गांवों में दस साल में सौ करोड़ रूपए खर्च हो गए लेकिन इसके बाद भी गांवों में विकास की गंगा नहीं बही है हाल यह है कि सात गांवों में अब तक बिजली नहीं है। ग्रामीण लालटेन युग में जीने को मजबूर है बात कहीं और की नहीं प्रदेश के पर्यटन नक्शे में शामिल करने के लिए अलग से करोड़ों का व्यय का साक्षी बनने वाले पातालकोट की है।
जिले की तामिया तहसील के पातालकोट को अजूबा कहा जाता है। अजूबा यहां इस बात का है कि पातालकोट अस्सी वर्गकिलोमीटर में फैली खाई है और इस खाई में दस गांव बसे हैं जिनमें भारिया जनजाति निवास करती है। यह अजूबा बताकर पातालकोट को वन विभाग पर्यटन नक्शे में शामिल करने के लिए तीन करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च कर चुका है लेकिन इससे बड़ा अजूबा यह है कि पातालकोट के दस गांवों में रहने वाली भारिया जनताति के विकास के नाम पर पिछले दस सालों में आदिमजाति कल्याण विभाग भारिया जनजाति विकास प्राधिकरण सहित अन्य विभाग सौ करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च कर चुके हैं यह खर्चा आदिम जाति कल्याण विभाग और प्राधिकरण की फाईलों में दर्ज है। वास्तविकता यह है कि पातालकोट के दस गांवों में अब तक ना तो सड़क है, और ना बिजली और ना ही पानी की कोई व्यवस्था है। यहां रहने वाली भारिया जनजाति जल, जंगल और जमीन के सिद्धांतों पर अपना जीवन यापन करती है। पातालकोट के गांवों में पहुंचने के लिए पैदल के अलावा कोई रास्ता नहीं है इस खाई में बसे गांवों में जीवन इसलिये है कि वहां खेती हो जाती है। बीहड़ वन हैं और नदियां भी हैं।
डोडरमऊ में मात्र एक मकान
पातालकोट में 10 गांव है जिनमें डूडी भाजीपानी, चोपना, भाजीपानी, किरमउ,भूलनधारी, जामुनखेड़ा, पिपरझेला, दबक कुंडी, डोडरउ एवं खूनाझिर शामिल है। इन दस गांवो में डोडरमउ सबसे कम आबादी वाला गांव है जिसमें मात्र एक मकान है और सात लोग रहते हैं जबकि जामुनखेड़ा के दो मकानों में 6, पिपरझेला के 9 मकानों में पचास, दबककुंडी के दो मकानों में आठ लोग निवास करते हैं। डूडी भाजीपानी में 12 मकान हैं जिनमें पचास और चोपनाभाजीपानी में बारह मकान और आबादी लोगों की है। इसी तरह किरमउ में चार, नवलगांव में 17 मकान है जिनकी आबादी 103 है। खूनाझिर के 32 मकानों में 159 लोग रहते हैं। भूलनघाटी के तीन मकानों में बारह ग्रामीणों का निवास है। इतनी राशि खर्च करने की जगह प्रशासन यदि भारिया जनजाति के इन लोगो को यदि पातालकोट से बाहर बसा देता तो ज्यादा अच्छा होता।
मात्र तीन गांवो में बिजली
आजादी के सत्तर साल बीत जाने के बाद भी पातालकोट के मात्र तीन गांवों दबककुंडी, डोडरमउ और खूनाझिर तक बिजली पहुंची है जबकि सात गांवो में बिजली का नामो निशान नहीं है। यहां के ग्रामीण आज भी लालटेन युग में जी रहे हैं। बिजलीविहीन गांवों में डूडीभाजीपानी, चोपना भाजीपानी, किरमउ, गोलनघाटी, जामुनखेड़ा, पिपरझेला शामिल है। बीहन वनक्षेत्रों में होने के कारण इन गांवों में बिजली पहुंचाने से विद्युत कंपनी ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं।
दस गांवों में दस साल में सौ करोड़ खर्च,फिर भी नहीं विकास,सात गांवों में आज भी अँधेरा पसरा
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