मंडी,हिमाचल के सेब, पलम व बुरांस की वाइन अब देश के सभी बड़े शहरों में मिलेगी। हिमाचल प्रदेश विपणन एवं प्रसंस्करण निगम ने इसके लिए दिल्ली की माउंटेन बैरल कंपनी के साथ करार किया है। माउंटेन बैरल कंपनी वाइन का उत्पादन मंडी जिले के जड़ोल प्रसंस्करण संयंत्र में करेगी। प्रथम चरण में कंपनी 25 हजार लीटर वाइन तैयार करेगी। इसके लिए कच्चा माल एचपीएमसी से खरीदेगी। एचपीएमसी की वाइन की 750 मिलीलीटर की एक बोतल 280 रुपये में बिकती है। देश के अन्य शहरों में वाइन की बोतल की क्या कीमत होगी? यह माउंटेन बैरल कंपनी खुद तय करेगी। वाइन की ब्रांडिंग व मार्केटिंग का जिम्मा भी कंपनी का होगा। बुरांस के फूल हिमालय के तराई वाले क्षेत्र में पाए जाते हैं। मंडी जिले के ऊंचाई वाले जंगलों में जनवरी से मार्च तक काफी मात्रा में बुरांस के फूल खिलते हैं। बुरांस के फूलों में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। पाचक तत्वों से भरपूर बुरांस के फूलों का उपयोग लोग आम तौर पर चटनी व स्कवैश आदि बनाने में करते हैं।
आयुर्वेद में बुरांस के फूलों का इस्तेमाल शरीर में सूजन के इलाज में किया जाता है। इसके अलावा हृदय रोग,मधुमेह, गुर्दे की बीमारी में भी इसका उपयोग होता है। बुरांस के फूलों में रूटीन रसायन होता है, जो मुंह के छालों के इलाज में मदद करता है। रूटीन रक्तचाप नियंत्रण करने के अलावा कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम करता है। ऐसे में दिल के मरीजों के लिए बुरांस से बनी वाइन काफी फायदेमंद है। बुरांस पहाड़ी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में खिलते हैं। इनका वाइन में उपयोग होने से पहाड़ी क्षेत्र में रहे लोगों के लिए रोजगार के अवसर खुल जाएंगे। बुरांस के फूल जंगलों से एकत्र कर एचपीएमसी को बेचने से कई लोगों को रोजगार मिलेगा। फलों से बनने वाली वाइन में अल्कोहल की मात्रा बहुत कम होती है। व्हिस्की में 42 फीसद तक अल्कोहल होता है, जो ज्यादा मात्रा में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। वाइन वैसे भी स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद मानी जाती है। इसमें अल्कोहल की मात्रा 11 फीसद रहेगी। वाइन बनाने के लिए एचपीएमसी की मशीनरी का इस्तेमाल करेगी। कंपनी विदेशी विशेषज्ञों की देखरेख में तीन फ्लेवर (स्वाद) की वाइन बनाएगी। कच्चे माल यानी सेब, पलम व बुरांस की खपत बढ़ने से बागवानों की पौ बारह होगी। एचपीएमसी को भी इसकी एवज में लाखों रुपये का फायदा होगा। जड़ोल प्रसंस्करण संयंत्र में एचपीएमसी हर साल सेब, पलम, कीवी, बुरांस, स्ट्राबेरी आदि से करीब 18 से 20 हजार बोतल वाइन तैयार करता था और प्रदेशभर में अपने जूस बार पर ही बेचता था। एचपीएमसी कुछ माह में यह स्टाक तैयार कर लेता है। इसके बाद कई माह तक मशीनरी खाली रहती है।