कानपुर, गर्भवती महिलाओं के अल्ट्रासाउंड के दौरान डॉक्टर भ्रूण की हलचल से ही बच्चे की स्थिति बताते हैं। लेकिन बच्चे गर्भ में क्यों घूमते हैं, इसका जवाब अब तक किसी के पास नहीं था। अब आईआईटी कानपुर के बॉयोलॉजिकल साइंस एंड बॉयोइंजीनियरिंग विभाग के प्रो. अमिताभ बंदोपाध्याय ने इसका राज खोल दिया है। इसके लिए उन्होंने तीन साल गहन अध्ययन किया। इसमें उनकी मदद आयरलैंड की जंतुविज्ञान की प्रो. पाउला मर्फी ने भी की। वैज्ञानिकों ने पाया कि गर्भ में भ्रूण के घूमने से ही हड्डियों के बीच जोड़ (कार्टिलेज) बनते हैं, जिसकी बदौलत ही हम चल फिर सकते हैं। इसे वर्ष 2018 के दुनिया के सर्वश्रेष्ठ शोध में शामिल किया गया है। मुर्गी और चूहे के भ्रूण पर तीन वर्षों तक चले शोध के बाद पाया गया कि अगर भ्रूण गर्भ में नहीं घूमेगा तो सिर्फ हड्डियां ही बनेंगी, जोड़ नहीं। इससे जीवन संभव नहीं है। आईआईटी कानपुर की यह रिपोर्ट विश्व की श्रेष्ठ शोध में शामिल हो गई है। डेवलपमेंट जनरल में जनवरी-2018 में प्रकाशित इस रिसर्च को दुनिया के करीब 91.95 लाख लोगों ने पसंद किया है। प्रो. बंदोपाध्याय और प्रो. मर्फी ने एक साथ मिलकर यह शोध किया है। प्रो. मर्फी ने आयरलैंड की प्रयोगशाला में चूहे के गर्भ पर और प्रो. बंदोपाध्याय ने आईआईटी की लैब में मुर्गी के भ्रूण पर शोध किया। इस प्रक्रिया में पहले भ्रूण को पूरी तरह विकसित किया गया। बारीकी से देखा गया कि भ्रूण में विकास के दौरान कैसे-कैसे परिवर्तन हो रहे हैं। इसके बाद भ्रूण का मूवमेंट रोकने को लेकर शोध शुरू हुआ। लंबे शोध के बाद एक ऐसा रसायन गर्भ में डाला गया, जिससे भ्रूण के विकास पर कोई असर न पड़े और इसका घूमना रुक जाए। धीरे-धीरे गर्भ में भ्रूण का विकास तो होने लगा। आंखों के साथ-साथ हाथ और पैर भी बने, मगर सबसे बड़ा अंतर तब आया जब शरीर में एक भी जोड़ नहीं बना। केवल हड्डियां ही विकसित हुईं। इसके कारण सामान्य रूप से जीवन संभव नहीं था। फिर गर्भ में भ्रूण के घूमने के साथ शोध शुरू किया। इसका असर साफ दिखाई दिया। अब शरीर पूरी तरह सामान्य रूप से विकसित होने लगा और जोड भी बनने लगे। प्रो. बंदोपाध्याय ने बताया कि हड्डियां और कार्टिलेज एक ही सेल पापुलेशन से बनती हैं। गर्भ में भ्रूण विकास के दौरान बीएमपी प्रोटीन निकलता है, जो हड्डियां विकसित करता है। गर्भ में भ्रूण के विकास के दौरान बीएमपी प्रोटीन सेल से ही मिलता रहता है। मेडिकल साइंस में बीएमपी प्रोटीन काफी अहम माना जाता है। अगर शरीर के जिस अंग की हड्डी टूट जाए और उस हिस्से को बीएमपी प्रोटीन उपलब्ध हो जाए तो रिकवरी छह माह में हो जाती है।