नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने इच्छामृत्यु के लिए सशर्त इजाजत दे दी गई है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय बेंच ने यह फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर मरणासन्न व्यक्ति द्वारा इच्छामृत्यु के लिए लिखी गई वसीयत (लिविंग विल) को मान्यता देने की मांग की गई थी। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 न्यायाधीशों की पीठ ने पिछले साल 11 अक्तूबर को इस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था जो आज सुनाया गया। न्यायालय ने कहा कि लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाना गलत नहीं है। अदालत ने कहा कि इसके दुरुपयोग से बचने के लिए नियम बनाए जाएं। न्यायालय ने अपने अहम फैसले में कहा कि असाध्य रोग से ग्रस्त व्यक्ति ने उपकरणों के सहारे उसे जीवित नहीं रखने के संबंध में यदि लिखित वसीयत दिया है, तो यह वैध होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वसीयत का पालन कौन करेगा और इस प्रकार की इच्छामृत्यु के लिए मेडिकल बोर्ड किस प्रकार हामी भरेगा, इस संबंध में वह पहले ही दिशा-निर्देश जारी कर चुका है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इस संबंध में कानून बनने तक उसकी ओर से जारी दिशा-निर्देश और हिदायत प्रभावी रहेंगे। भारत के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के अन्य सदस्य भी न्यायालय की ओर से जारी दिशा-निर्देशों और हिदायतों से इत्तेफाक रखते हैं।
– क्या है मामला
उल्लेखनीय है कि एक एनजीओ कॉमन कॉज ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि संविधान के आर्टिकल 21 के तहत जिस तरह नागरिकों को जीने का अधिकार दिया गया है, उसी तरह उन्हें मरने का भी अधिकार है। इस पर केंद्र सरकार ने कहा कि इच्छामृत्यु की वसीयत (लिविंग विल) लिखने की अनुमति नहीं दी जा सकती, लेकिन मेडिकल बोर्ड के निर्देश पर मरणासन्न व्यक्ति का लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाया जा सकता है। यह मामला तब भी प्रमुखता से उठा था जब लगभग 35 साल से कोमा में पड़ी मुंबई की नर्स अरुणा शानबॉग को इच्छामृत्यु देने से सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में इनकार कर दिया था।
– क्या होती है लिविंग विल
‘लिविंग विल’ एक लिखित दस्तावेज होता है जिसमें कोई मरीज पहले से यह निर्देश देता है कि मरणासन्न स्थिति में पहुंचने या रजामंदी नहीं दे पाने की स्थिति में पहुंचने पर उसे किस तरह का इलाज दिया जाए।
– इच्छामृत्यु का मतलब
‘पैसिव यूथेनेशिया’ (इच्छामृत्यु) वह स्थिति है जब किसी मरणासन्न व्यक्ति की मौत की तरफ बढ़ाने की मंशा से उसे इलाज देना बंद किया है। इस मामले पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि अगर इच्छामृत्यु को मंजूरी दी गई तो इसका दुरुपयोग हो सकता है।