राजाजी टाइगर रिजर्व में दिख रहे हैं गिद्ध, CG में बढ़ रही इनकी संख्या

बिलासपुर,भारत जैव विविधता से परिपूर्ण देश है। सभी जीव एक दूसरे से खाद्य श्रृंखला द्वारा संबंधित हैं। इनमें से किसी एक का विलुप्त हो जाना, पूरे वातावरण को प्रभावित करता है। गिद्ध को आहार श्रृंखला में सर्वोच्च स्थान पर आंका गया है। 90 के दशक में लगभग 40 लाख गिद्ध भारत में थे, जो एक साल में 12 लाख टन मांस समाप्त कर देते थे। आज इनकी 99 फीसदी आबादी खत्म हो चुकी है। ऐसे में अच्छी खबर छत्तीसगढ़ से आई है, जहां अचानकमार टाइगर रिजर्व के औरापानी बफर जोन में गिद्ध बड़ी संख्या में उड़ान भरते नजर आ रहे हैं। यहां गिद्धों की एकाएक बढ़ी संख्या को लेकर गंभीर वन विभाग अब इन्हें संरक्षित करने की दिशा में बड़ा कदम उठाने की कवायद कर रहा है। डीएफओ कृष्ण जाधव ने बताया कि मुख्यालय से आदेश मिलने के बाद प्रजनन केंद्र स्थापित करने की योजना तैयार की जा रही है। इसके लिए भोपाल स्थित नेशनल पार्क और हैदराबाद जू के विशेषज्ञों की मदद ली जाएगी। उन्होंने बताया कि वर्तमान में यहां करीब 50 गिद्धों को उड़ान भरते देखा गया है। सुरक्षित स्थान होने के कारण कुनबा बढ़ रहा है। यह यहां किसी ऊंचे पेड़ या पहाड़ पर अपना भद्दा सा घोसला बनाते हैं। मादा एक या दो सफेद अंडे देती है। नेचर क्लब के संयोजक पर्यावरणविद मंसूर खान बताते हैं कि भौरमगढ़ पहाड़ 500 फीट की ऊंचाई पर है। इस पर ऊंचे पेड़ों सहित एक गुफा भी है। यहां मानव दखलअंदाजी नहीं है। इस वजह से गिद्धों ने यह रहवास नहीं बदला। यहां गिद्ध 50 साल से रह रहे हैं। 1975-76 से इन्हें लगातार देखा जा रहा है। अब इनकी संख्या तेजी से बढ़ रही है। उधर, राजाजी टाइगर रिजर्व में भी गिद्ध दिख रहे हैं। यहां पिछले दिनों अखिल भारतीय बाघ गणना के दौरान सफेद रंग के दो दर्जन गिद्ध देखे गए। अधिकारियों के मुताबिक इनकी संख्या यहां बढ़ रही है। वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. पीके चंदन बताते हैं कि खेतों में फर्टिलाइजर के अधिक प्रयोग व पालतू जानवरों को बीमारियों से बचाने के लिए दी जाने वाली डाइक्लोफेनेक दवा ने गिद्धों को विलुप्ति की कगार पर पहुंचा दिया। मृत मवेशी के शरीर से यह रसायन गिद्ध तक पहुंचकर उसकी किडनी पर गंभीर असर करता है, जिससे उसकी मौत हो जाती है। गिद्ध मृतोपजीवी पक्षी है, जिसका पाचनतंत्र मजबूत होता है। इससे ये रोगाणुओं से परिपूर्ण सड़ा गला मांस भी पचा जाते हैं और संक्रामक रोगों का विस्तार रोकते हैं। इनके न होने से जंगली पशु-पक्षियों में विभिन्न संक्रामक रोग फैल रहे हैं।

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