जस्टिन ट्रूडो के तीनों बच्चे आत्मनिर्भर ,आता है खाना बनाना,पत्नी सोफी की हो रही प्रशंसा

नई दिल्ली,कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो के भारत दौरे के समय भारत के लोग उनके परिवार में दिलचस्‍पी लेते ज्यादा नजर आये। खास तौर से जस्टिन ट्रूडो के तीनों बच्‍चे जेवियर,एला ग्रेस और हेड्रियन काफी सुर्खियां में रहे। हर मौके पर उनका हर अलग अंदाज लोगों के दिल को छू गया। बच्‍चों की परवरिश को लेकर भी जस्टिन ट्रूडो और उनकी पत्‍नी सोफी की प्रंशसा की जा रही है। बच्‍चों के हाव-भाव से मासूमियत के साथ उनकी परिपक्‍वता भी साफ झलकी है। वाकई में इसके पीछे उनके माता-पिता खास तौर से सोफी ट्रूडो का हाथ है,जिन्‍होंने बच्चों की परवरिश,लैंगिक समानता और आत्मनिर्भरता के बारे में सीख देते हुए कहा है कि उन्होंने अपने बच्चों को मूल आहार भी बनाना सिखाया है।
शी विल ग्रो इनटू इट’ नामक वैश्विक अभियान की एशिया में शुरुआत करते हुए सोफी ने गुजरात से आई हुई 12 स्कूली लड़कियों के साथ बातचीत में इसकी जानकारी दी। बता दें कि ट्रूडो दंपत्ती के तीन बच्चे हैं,जो क्रमश:9,8 और 4 वर्ष के हैं।इनमें दो बेटियां और एक बेटा है,जो खास तौर से अपने मासूम अंदाज से भारतीय लोगों के बीच कम समय में ही पॉपुलर हो गया है। उसका हर अंदाज लोगों को ‘हाउ क्‍यूट’ कहने पर मजबूर कर रहा है। सोफी ने कहा कि उनके तीन बच्‍चे हैं, जिसकी वजह से वह काफी व्‍यस्‍त रहती हैं। उन्‍होंने एक महीने पहले की एक घटना के बारे में बताया कि जब बच्‍चे अकेले घर पर थे। सोफी ने कहा, मैं घर से बाहर निकल गई थी और बाद में याद आया कि वे बिना किसी की निगरानी के हैं। मैं तुरंत भागकर घर गई और जब मैंने घर में कदम रखा तो देखा कि उन्‍होंने आमलेट बनाया था और वह मेरी बेटी थी जिसने अपने छोटे भाई के लिए बनाया था। यह देखकर सोफी की खुशी का ठिकाना नहीं था। वहीं कार्यक्रम के दौरान सोफी ने महिलाओं को मानवता का गर्भास्थान बताते हुए युवा महिलाओं को निडर बनने और सिर उठाकर दुनिया का सामना करने की सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि वे उन लोगों की आवाज बनें, जो अपनी आवाज खुद बुलंद नहीं कर सकते। साथ ही ऐसा करते वक्त वे उसकी खुशी भी महसूस करें। गौरतलब है कि जस्टिन ट्रूडो पीएम नरेंद्र मोदी के आमंत्रण पर सात दिवसीय भारत दौरे पर हैं और अब तक कई पर्यटन स्‍थलों का दौरा भी कर चुके हैं,जिनके लिए लोग सात समुंदर पार से आते हैं। इनमें ताजमहल के दीदार,गांधी आश्रम में चरखा चलाने के साथ-साथ स्‍वर्ण मंदिर में मत्‍था टेकने से लेकर सेवा करना भी शामिल है।

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