स्कूल के सामने लड़की की हत्या

अनूपपुर, गुरुवार दोपहर जिला पुलिस कन्ट्रोल रुम में पुलिस अधीक्षक सुनील जैन एडिशनल एसपी वैष्णव शर्मा, एसडीओपी अरविन्द गर्ग, नगर निरीक्षक वीबी टांडिया के साथ जिस वक्त जिले के आला पत्रकारों के साथ एटीएम ठगी काण्ड का खुलाशा कर रहे थे,लगभग उसी वक्त कोतमा में एक स्कूली छात्रा की बेरहमी से हत्या कर दी गयी। पत्रकार वार्ता के बीच किसी पत्रकार के माध्यम से एसपी को सूचना मिली,कुछ ही मिनटों मे पत्रकार वार्ता समाप्त हुई। जाहिर है सभी का मन खराब हो गया था,लोग अपने सूत्रों से घटना,उसके कारणों तक जाने का प्रयास करने लगे। कोतमा मे गतिविधियां जिस तेजी से बढीं, शाम होते होते ठडी पड गयी,लोग अपने नित्य के कार्य मे लग गये। पुलिस ने कायमी की है,कोई पहली एवं अन्तिम हत्या नहीं है। सोशल मीडिया – नेट युग में डाक्टर, पुलिस, पत्रकार,नेता की क्या कहें आम जनता भी इसे सनसनी खेज खबर( सूचना) की आदी हो चुकी है।
मेरा मानना है कि इसे आम वारदात की तरह खारिज नहीं कर सकते। कुछ वर्ष पहले भी एक घटना मे स्कूल जा रही बच्ची पर किसी ने टांगी से हमला किया था ,उसके तत्काल बाद शहडोल मे कालेज छात्रा को दौडाकर काट डाला गया। ऐसी घटनाएं ह्रदय को झकझोर कर रख देती हैं। माता- पिता कितने अरमानो से, कितने कष्ट भोग कर बेटियों- बेटों को पालते पोसते हैं। वे स्कूल जाते हैं। महाविद्यालयीन शिक्षा के लिये घर से बाहर आना जाना करते हैं। माता पिता के लिये उन पर सतत निगरानी संभव नहीं । लेकिन समाज के लिये संभव है। ऐसी घटनाओं के बीज एक दिन में अंकुरित नही होते। इनके विषबेल एक दिन की पैदाईश नहीं है। तथ्यों, संकेतों,घटनाओं की सतत उपेक्षा के परिणाम स्वरूप ऐसी घटनाएं घटती हैं। पट्ट पडी छात्रा के शव के पास किताब कापियां बिखरी पडी हैं । हत्यारा मार कर भाग खडा हुआ,खंजर वही फेक गया। शायद इस डर से कि हथियार सहित जल्दी पकडा लिया जाउंगा। बीच बाजार कक्षा 11 की छात्रा की दिनदहाडे हत्या कर कोई धडल्ले से भाग जाता है, यह समाज मे कानून के कम होते डर का परिचायक है। छात्रा के शव के पास पडी किताब कापियां जारी व्यवस्था के धूलधूसरित होने के संकेत हैं। सुबह जब एक बेटी किताब कापियां लेकर घर से स्कूल के लिये निकलती है तो उसे ,उसके माता-पिता को समाज का संबल रहता है। लोग मानते हैं कि सुनसान जंगली क्षेत्र नहीं है। कानून व्यवस्था लागू है,पुलिस है,समाज में अच्छे लोग हैं, समाजसेवी, नेता, गुरुजी,व्यापारी हर वह व्यक्ति है जो किसी के बेटे बेटी की रक्षा कर सकते हैं। गलत तत्वों को रोक- टोक सकते हैं। गलत रास्ते पर चलने वाले बच्चों को समझाईश दे सकते हैं। कोतमा मे भी पूजा के परिजनों को यह उम्मीद रही होगी,जो बेटी की हत्या के बाद टूट गयी।
कोतमा मे एक छात्रा – एक पूजा की ही नहीं, मेरी – आपकी- हम सब की बेटी सरेराह मार दी गयी। एक भविष्य ,एक भरोसे का खून हो गया। छात्राओं की शिक्षा के लिये सरकार लाख जतन ,प्रोत्साहन करती है। ऐसी हर घटना उस पर चोट है। स्कूल समय मे जब छात्र – छात्राएं बंक मार कर स्कूल से बाहर जा कर तफरी करते हैं, तब लोग , स्कूल के प्राचार्य- शिक्षक इस लिये नहीं टोकते की किसी घटना के बाद लोग उन्हे ही दोषी ठहरा कर धमकाने लगते हैं।नजर व निगाह का लिहाज खत्म हुआ है। माता- पिता अब शिक्षक पर नहीं अपने बच्चों द्वारा की गयी शिकायतों पर सीधे थाना – पुलिस करने लगते हैं। हमारी पीढी तक छडी पडे झम झम – विद्या आए छम छम की कहावत लागू थी। तब शिक्षक गलतियों पर स्कूल में भी पीटते थे,घर आकर घर मे घुस कर मारते थे। जाहिर है उनका दर्जा ,उनकी जिम्मेदारी माता -पिता से ज्यादा थी।

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