हाईकोर्ट ने मांगा जवाब एमबीबीएस के सौ स्टुडेंट्स का भविष्य खतरे में

जबलपुर, मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति आरएस झा एवं न्यायमूर्ति श्रीमती नंदिता दुबे की युगलपीठ ने केन्द्र, राज्य सरकार व मेडीकल काउंसिल आफ इंडिया को नोटिस जारी कर पूछा है कि अयोग्य घोषित मेडीकल कॉलेज में अध्ययनरत सौ स्टुडेंड का क्या होगा..? इसका जवाब देने के लिये अनावेदकों को चार सप्ताह का समय दिया गया है।
एडवांस्ड इंस्टिट्युट आफ मेडीकल साइंसेस एंड रिसर्च सेंटर कोलार रोड भोपाल के करीब सौ छात्रों ने हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की है। याचिका में कहा गया है कि उन्हें वर्ष 2016 में एमबीबीएस कोर्स के लिये सरकारी काउंसिलिंग के बाद एडवांस्ड इंस्टिट्युट आफ मेडीकल साइंसेस एंड रिसर्च सेंटर एडमिशन दिया गया था। इस मेडीकल कॉलेज में जब पहुंचे तो वहां पर बिल्डिंग के अलावा कुछ नहीं था। न तो ३ सौ बिस्तर वाला इंफ्रास्ट्रक्चर था, न ब्लड बैंक था और न ही मेडीकल कॉलेज के लिये आवश्यक संसाधन और स्टाफ था। किसी तरह से भरोसा दिलाया जाता रहा लेकिन मेडीकल काउंसिल आफ इंडिया ने औचक निरीक्षण उपरात इस कालेज की मान्य समाप्त घोषित कर दी। ऐसी अवस्था में एडवांस्ड इंस्टिट्युट आफ मेडीकल साइंसेस एंड रिसर्च सेंटर में एडमिशन पाए सौ छात्रों का भविष्य खतरे में पड गया है। डेढ वर्ष का समय भी बर्बाद हो गया है। याचिकाकर्ताओं की तरफ से अधिवक्ता आदित्य संघी ने कहा कि राज्य सरकार ने मेडीकल कॉलेज के लिये निर्धारित इंफ्रास्ट्रचर को देखा बिना अनुमति प्रदान कर दी। राज्य सरकार की तरफ से जो अनिवार्यता प्रमाण पत्र जारी किया गया है उसमें स्पष्ट लिखा हुआ है कि यदि किसी कारण से मेडीकल कॉलेज की मान्यता निरस्त होती है तो राज्य सरकार दाखिल ले चुके स्टुडेंट्स की वैकल्पिक व्यवस्था करेगी। अधिवक्ता श्री संघी ने कहा कि सौ स्टुडेंट्स भविष्य को देखते हुए एमबीबीएस कोर्स की पढ़ाई के लिये वैकल्पिक मेडीकल कालेजों में एडमिशन दिये जाने का आदेश करे। याचिकाकर्ताओं ने संचालक मेडीकल एजुकेशन, एमसीआई और केन्द्र सरकार के अलावा एडवांस्ड इंस्टिट्युट आफ मेडीकल साइंसेस एंड रिसर्च सेंटर के चेयरमैन शैलेन्द्र भदौरिया, बोर्ड डायरेक्टर को व्यक्तिगत रुप से पक्षकार बनाया है।
मेडीकल कालेज ने बिल्डिंग का कब्जा खोया
पिटीशन में रेखांकित किया गया है कि एडवांस्ड इंस्टिट्युट आफ मेडीकल साइंसेस एंड रिसर्च सेंटर के लिये जो बिल्डिंग बनाई गई थी, उसके लिये कारपोरेशन बैंक से लोन लिया गया था। लोन न चुकाने की वजह से कारपोरेशन बैंक ने इस बिल्डिंग का अधिपत्य ले लिया। अब कॉलेज के पास खुद की बिल्डिंग तक नहीं बची।

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