त्रिपुरा में ये 20 आदिवासी बहुल सीटें तय करेंगी किसके पास रहेगी सत्ता

अगरतला,आदिवासी बहुल त्रिपुरा में चुनाव प्रचार थम गया है। राज्य में 18 फरवरी को चुनाव होना है। 25 सालों से प्रदेश की सत्ता पर काबिज वामपंथी दलों और पूर्वोत्तर में अपनी पकड़ बनाने को बेताब भाजपा के लिए 20 आदिवासी सीटें सबसे महत्वपूर्ण मानी जा रही हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने को शांतिबाजार में रैली का आयोजन किया। फिलहाल त्रिपुरा में आदिवासी बहुल 20 सीटों पर लेफ्ट का कब्जा है। यही वे सीटें हैं, जो हमेशा ही राज्य में सत्ता का निर्धारण करती रही हैं। सन 2013 में आदिवासियों को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने नेशनलिस्ट पार्टी ऑफ त्रिपुरा (आईएनपीटी) से गठबंधन किया था, लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला। सन 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को 1.87 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन सन 2014 के बाद से लगातार मेहनत करके भाजपा ने अपना संगठन मजबूत किया है। भाजपा के सहयोगी संगठन ने भी शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में काम करके अपनी पकड़ बनाने की कोशिश की है।
सन 2015 में हुए जिला पंचायत चुनावों में मिली सफलता से भी भाजपा के हौसले आसमान पर हैं। त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार का कहना है कि राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों की हालत अन्य राज्यों की अपेक्षा काफी बेहतर है। यही लोग राज्य की रीढ़ हैं। आदिवासी समुदाय से आने वाले दशरथ देब्रामा जैसे लोग राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। राज्य में एकता को किसी नेता और पार्टी द्वारा तोड़ा जाना संभव नहीं है। राज्य का विभाजन चाहने वाले लोगों के साथ भाजपा ने गठबंधन किया है।
सीपीएम भाजपा पर विभाजनकारियों के साथ होने का आरोप लगा रही है। सीपीएम का कहना है कि आईपीटीएफ से गठबंधन करने से पहले गृहमंत्री राजनाथ सिंह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एनसी देबबर्मा की मुलाकात हुई थी। इस पर देबबर्मा का कहना है त्रिपरालैंड की हमारी मांग को देखते हुए गृहमंत्री ने वादा किया है कि वह एक उच्च स्तरीय मंत्री लेवल की टीम बनाएंगे जो इसका विश्लेषण करेगी। तीन महीने में यह कमेटी अपनी रिपोर्ट सौंप देगी।

 

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