बिलासपुर, संसदीय सचिवों के मामले में लगभग डेढ़ साल की सुनवाई करने के बाद आज हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस टीबी राधाकृष्णनन व जस्टिस शरद गुप्ता की डिवीजन बेंच ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
कांग्रेस के पूर्व विधायक मोहम्मद अकबर और हमर संगवारी के राकेश चौबे की अक्टूबर 2016 में प्रस्तुत छत्तीसगढ के संसदीय सचिवों की नियुक्ति को चुनौती देने वाले याचिका में आज हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने सभी पक्षो की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। कुछ माह पहले इस मामले में कोर्ट ने अंतरिम आदेश दिया था और संसदीय सचिवों के काम करने, शासन द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं पर रोक लगा दी थी। कई बार कुछ न कुछ कारणों से हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई आगे बढ़ती रही है। हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी मे कहा था कि मामला संवैधानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है और इसके सभी पहलुओ पर वह विचार करेगा । मामले में साजा विधायक लाभचंद बाफना की ओर से उनके अधिवक्ता राजा शर्मा ने अपना पक्ष अलग से रखा थाा। याचिकाकर्ताओ ने हाईकोर्ट में अलग-अलग याचिका दायर कर राज्य के संसदीय सचिवों की नियुक्ति को असंवैधानिक बताया है। उनका कहना है कि संसदीय सचिव जैसे पद का संविधान में कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन भाजपा सरकार ने अपने लोगों को लाभ पहुंचाने प्रदेश में ग्यारह ससंदीय सचिवों की नियुक्ति की है। इसके पहले सुप्रीमकोर्ट ने असम और सिक्किम के मामलों में संसदीय सचिवों की नियुक्ति को असंवैधानिक माना है।
ये है 11 संसदीय सचिव
शिवशंकर पैकरा, लखन देवांगन, तोखन सिंह, राजू सिंह क्षत्री, अंबेश जांगड़े, रूप कुमारी चौधरी, गोवर्धन सिंह,लाभचंद बाफना, मोती राम चंद्रवंशी, चंपादेवी पावले, सुनीती सत्यानंद राठिया।
संसदीय सचिवों के मामले में सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित
