उत्खनन कर मिट्टी,मुर्रम का मार्ग बनाने से सिमटती जा रही जलधारा,पानी की किल्लत

मण्डला,बढ़ते अवैध उत्खनन से नर्मदा की सहायक नदियां प्रभावित हो रही हैं। दिनों दिन घटते जलस्तर इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि आने वाले समय में पानी-पानी के लिये लोगों को मोहताज होना पड़ेगा, क्योंकि माफियाओं द्वारा किये जा रहे अधिक मात्रा में अवैध उत्खनन से जलधारा प्रभावित हो रही है। निस्तार से लेकर खेतों में सिंचाई तक के लिये पानी की किल्लत अभी से शुरू हो गयी है। अल्प बारिश के कारण पहले से ही पानी नदी, नालों व बांधों में कम मात्रा में है। प्रदेश की जीवन रेखा नर्मदा के कम होते प्रवाह को बढ़ाने व रेत खनन को पूरी तरह प्रतिबंध करने के दावे मुख्यमंत्री के खोखले साबित हो रहे हैं। रेत माफिया दिन रात से सहायक नदियों से अवैध उत्खनन कर प्राकृतिक प्रवाह जो जलधारा का रहता है, उसका स्वरूप बदलने में लगे हुये हैं। नर्मदा से जहां रेत का अवैध उत्खनन थमने का नाम नहीं ले रहा है, वहीं सहायक नदी बंजर, बुढ़नेर, सुरपन में ठेकेदार मनमाने ढंग से रेत का खनन कर प्राकृतिक प्रवाह को प्रभावित कर रहे हैं। नर्मदा से महाराजपुर के संगमघाट पर मिलने वाली बंजर नदी पर तो रेत के ठेकेदारों द्वारा नदी को ही पूरकर मार्ग बना दिया, ताकि आसानी से अवैध उत्खनन किया जा सके। हालात सहायक नदियों के इतने खराब हो गये हैं कि उनमें न तो रेत बची है और न ही पानी। रेत माफियाओं के द्वारा तो मिट्टी को भी नहीं छोड़ा, उसे भी निकालकर छन्ना लगवाकर रेत अलग करवाई जा रही है, उसके बाद लोगों को उपलब्ध महंगे दामों में करा रहे हैं। बंजर नदी, बुढ़नेर, सुरपन व हालोन में अभी भी बेहिसाब अवैध उत्खनन जारी है। ठेकेदारों के द्वारा डम्प करने के लिये अनुमति लेकर जो स्थल चयन किया गया है। उन स्थलों पर खनिज विभाग जांच करे तो स्पष्ट हो जायेगा कि किस तरह अवैध उत्खनन का कारोबार दिन रात से जारी है। कुछ खदानों में मजदूर दिन में काम करते देखे जा सकते हैं, जैसे ही शाम ढलती है और खदानों में पोकलेन, जेसीबी मशीनें रेत निकालने के लिये उतर जाती हैं। जानकारों ने बताया कि कुछ ठेकेदार सत्ता के दम पर स्वीकृत रकवे से अधिक क्षेत्र में खनन करने पर आमादा हैं, ऐसे खनन माफियाओं पर विभाग लगाम लगाने में असफल है। वैध खदान क्षेत्र में रेत बची नहीं तो माफिया रकवे से बाहर रेत खनन करने सक्रिय हो गये हैं, क्योंकि विभाग की कार्यप्रणाली से सभी अवगत हैं। इसलिये दिन में बड़ी ईमानदारी से रेत मजदूरों के माध्यम से निकाली जाती है और शाम ढलते ही बड़ी-बड़ी मशीनें रेत निकालने उतर जाती हैं। इस बात से प्रशासन भी अनभिज्ञ नहीं है, फिर भी देर शाम खदानों में दबिश देने नहीं पहुंच रही हैं।

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