श्रीनगर,जम्मू कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाएं कानून व्यवस्था से जुड़ी समस्या नहीं हैं, बल्कि ये पाकिस्तान के समर्थन और फंडिंग के जरिए सैयद अली शाह गिलानी जैसे हुर्रियत नेताओं और हाफिज सईद और सैयद सलाहुद्दीन जैसे आतंकियों की एक सोची-समझी साजिश का हिस्सा हैं। यह बात राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने अपनी चार्जशीट में कही है। उसके मुताबिक, कश्मीर में पत्थरबाजी एक उद्योग का रूप ले चुकी है, जहां हुर्रियत और उससे जुड़े समूह इसे अंजाम देते हैं। विभिन्न स्तरों पर अलगाववादी नेताओं ने पत्थरबाजी के लिए हथियारबंद समूह बना रखे हैं, जो खुद का चेहरा ढंककर रखते हैं। इसमें मुख्य तौर पर घाटी के नौजवानों को शामिल किया गया है। अलगाववादियों को ‘कश्मीर में आतंकवाद का राजनीतिक चेहरा’ बताते हुए एनआईए ने कहा है कि जम्मू कश्मीर को भारत से अलग करने की अपनी साजिश के हिस्से के तौर पर हुर्रियत कॉन्फ्रेंस और आतंकियों ने पत्थरबाजी की रणनीति बनाई है। इसके लोग पत्थरबाजी की रणनीति बनाते हैं, फंड इकट्ठा करते हैं और प्रचार का सहारा लेते हैं। बंद, सड़कों पर जबरन जाम, सरकारी और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना, आगजनी करना, स्कूलों को जलाना, बैंकों को लूटना और मुठभेड़स्थलों पर सुरक्षाबलों के ऊपर भीड़ के हमलों को अंजाम दिलाना भी हुर्रियत का ही काम है। ये लोग दुकानदारों, कारोबारियों और कश्मीर के बाशिंदों से फंड इकट्ठा करते हैं, जिसे ‘रुकुन’ कहा जाता है। ये कभी-कभी तो सेब उत्पादकों को पांच से 10 लाख रुपए देने तक के लिए धमकाते हैं। ये पेशेवर पत्थरबाज कश्मीर के तमाम शहरी, अर्ध-शहरी और ग्रामीण इलाकों में निर्दोष व भोलेभाले लोगों को बरगलाकर सेना, सीआरपीएफ या जम्मू-कश्मीर पुलिस के खिलाफ हिंसा की शुरुआत करते हैं। ये मासूम लोगों को ढाल के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। एनआईए ने कहा कि सुरक्षा बल हिंसा कर रहे पेशेवर पत्थरबाजों से निपटने के लिए उन पर बल प्रयोग को मजबूर हो जाते हैं। पत्थरबाजी के वक्त जो युवा पैलेट गन से घायल होते हैं, उन्हें अलगाववादी ‘ट्रॉफी’ के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। पत्थरबाजी की घटनाएं इतनी सुनियोजित होती हैं कि अलगाववादियों ने इसके लिए एक विस्तृत कैलेंडर भी बना रखा है। कैलेंडर में विरोध-प्रदर्शन, हमले, सड़क जाम, सार्वजनिक परिवहन को बाधित करने, जुलूस या मार्च निकालने, बाजारों को बंद करने जैसी गतिविधियों को लेकर विस्तार से निर्देश दिए गए हैं।