भोपाल,चिरायु मेडिकल कॉलेज ने 2012 की एमबीबीएस की 50 से ज्यादा सीटें मनमाने में रेट पर अयोग्य छात्रों को बेच दी थी। इस मामले में कॉलेज द्वारा चिकित्सा शिक्षा संचालनालय (डीएमई) को गुमराह किया गया। कॉलेज की एडमिशन कमेटी ने डीएमई को सरकारी कोटे की 63 सीटों में सिर्फ 9 सीटें ही खाली होने की जानकारी दी, जबकि 50 से ज्यादा सीटें खाली थीं। इन सीटों को 40 से 50 लाख रुपए में बेच दिया गया। सूत्रों की माने तो सबसे पहले तो स्कोरर को पीएमटी में बैठाकर कुछ छात्रों को नकल कराई जाती थी। इन्हें इंजन कहा जाता था और नकल करने वाले को बोगी। स्कोरर के पीएमटी में सलेक्ट होने पर उसे कॉलेज में दाखिला लेने के लिए कहा जाता था। इन छात्रों को कॉलेज की सरकारी कोटे की 63 सीटों में दाखिला दिया जाता था। इस तरह यह सीटें भरी हुई दिखाई जाती थीं। स्कोरर की कॉलेज प्रबंधन से पहले से साठगांठ होती थी, लिहाजा वे कॉलेज प्रबंधन से करीब डेढ़ लाख रुपए लेकर सीट छोड़ देते थे। इन्हीं सीटों को कॉलेज बेच देता था।
सीबीआई के आरोप पत्र के अनुसार एक स्कोरर (इंजन) ने रैकेटियर संजीव शिल्पकार के जरिए चिरायु मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया था। वह पहले से ही एक मेडिकल कॉलेज का छात्र था, लिहाजा उसने रैकेटियर से डेढ़ लाख रुपए लेकर सीट छोड़ दी थी। इस तरह से 12 स्कोरर ने सीट छोड़ी थी। चिरायु मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की सरकारी कोटे की 63 सीटें थीं। 25 सितंबर 2012 को हुई काउंसलिंग कमेटी ने कॉलेज प्रबंधन से सीटों की जानकारी मांगी तो बताया गया कि सिर्फ नौ सीटें खाली हैं, जबकि उस दौरान इससे काफी ज्यादा सीटें खाली थीं। 28 से 30 नवंबर के बीच 53 अयोग्य छात्रों को दाखिला दिया गया। मेडिकल कॉलेजों में काउंसलिंग की आखिरी तारीख 30 सितंबर थी। इसके बाद निजी कॉलेजों को दाखिल छात्रों की नाम मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) को भेजना पड़ता था। इस दौरान निजी कॉलेज पुरानी तारीख के ड्राफ्ट लेकर सीट बेच देते थे। सरकारी सीटों पर निजी कॉलेजों की ओर से किए मनमर्जी दाखिलों पर चिकित्सा शिक्षा संचालनालय (डीएमई) पकड़ सकता था। चिरायु समेत सभी कॉलेजों द्वारा किए गए गलत दाखिलों की सूची डीएमई की ओर से फारवर्ड कर यूनिवर्सिटी को भेजी गई, जिससे ये छात्र परीक्षा में बैठ सकें।
चिरायु ने एक सीट के लिए 40-50 लाख रूपये वसूले और अयोग्य छात्रों को दिया दाखिला
