MP में डॉक्टरों के पद भरे, लेकिन कोई लेक्चरर बन गया,तो किसी ने नर्सिंग होम खोल लिया

भोपाल,प्रदेश में पूर्व से ही डॉक्टरों का संकट चल रहा है। ऐसे में प्रदेश के डॉक्टर अपना मूल काम छोडकर दूसरे काम में लग जाए तो समस्या और गंभीर हो जाती है। ऐसा ही कुछ हो रहा है स्वास्थ्य विभाग में। स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टर कहीं मेडिकल कॉलेज में लेक्चरर बन गए हैं, तो किसी ने नर्सिंग होम खोल लिया है। लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में उनके पद भरे हुए हैं। किसी अस्पताल में डॉक्टरों की गिनती होती है तो अस्पताल न आने वाले डॉक्टरों को भी शामिल कर लिया जाता है। जबकि, इन्होंने मरीज तो दूर सालों से अस्पताल की सूरत तक नहीं देखी है। अलग-अलग संभाग में ऐसे डॉक्टरों की संख्या 10 से 17 के बीच है। यानी पूरे प्रदेश में करीब 130 डॉक्टर ऐसे हैं, जो अस्पताल नहीं आ रहे हैं। सरकार अब इन डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई करने जा रही है। ऐसे डॉक्टरों को स्वास्थ्य सचिव कवींद्र कियावत ने नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। साथ ही अस्पतालों में भी नोटिस चस्पा किए गए हैं। 15 दिन के भीतर अगर डॉक्टरों का जवाब नहीं मिला तो एकपक्षीय कार्रवाई की जाएगी। दरअसल, इनमें कुछ पुराने डॉक्टर हैं, जिन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृति (वीआरएस) के लिए आवेदन किया था। वीआरएस नहीं मिलने पर उन्होंने नौकरी में आना बंद कर दिया। इसी तरह से कुछ नए डॉक्टर हैं, जिन्होंने मेडिकल कॉलेज ज्वाइन कर लिया या फिर पीजी और सुपर स्पेशलिटी की पढ़ाई करने चले गए। हालांकि, पढ़ाई के लिए सरकार अनुमति देती है, लेकिन कोर्स पूरा करने के बाद डॉक्टर को एक तय अवधि तक काम करना होता है। लिहाजा कुछ डॉक्टर इस झंझट से बचने के लिए नौकरी ही छोड़ देते हैं। गैर हाजिर डॉक्टरों में 95 फीसदी 2014 के बाद के हैं। सूत्रों की माने तो प्रदेश में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 3228 पद हैं। इनमें 1274 डॉक्टर पदस्थ हैं। यानी 1954 विशेषज्ञों की कमी है। प्रदेश के 14 जिलों में विशेषज्ञों को एक-एक लाख रुपए वेतन का भी ऑफर दिया गया, लेकिन डॉक्टर नहीं मिले। इसी तरह से मेडिकल आफिसर्स के 3859 पदों में सिर्फ 2989 कार्यरत हैं। यानी 870 डॉक्टरों की कमी है। कुल मिलाकर 2824 डॉक्टरों की कमी है। वर्तमान में गैरहाजिर डॉक्टरों में ज्यादातर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र (सीएचसी) व प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र (पीएचसी) के हैं। ये अस्पताल जिला मुख्यालयों से दूर हैं, जबकि ज्यादातर डॉक्टर जिला मुख्यालय में रहते हैं। लिहाजा दूरी के चलते वे नौकरी छोड़ देते हैं। दूसरी दिक्कत सुविधाओं की है।

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