नई दिल्ली,आधार मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि अगर आधार के लिए किसी प्राइवेट कंपनी को जानकारी साझा की जाती है, तो उसे कितनी जानकारी होनी चाहिए, आधार नंबर कब और कहां मांगे जाने चाहिए, इसका इस्तेमाल किस हद तक हो सकता है, इस पर सरकार को गौर करने की जरूरत है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच के सामने आधार मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील श्याम दीवान ने दलील दी कि आधार के लिए लिया जाने वाला डाटा निजता के अधिकार का उल्लंघन है। निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है, लेकिन तमाम सरकारी और अन्य सुविधाओं के लिए आधार को अनिवार्य किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार की ड्यूटी है कि वह आधार के डेटा को तमाम प्राइवेट कंपनियों से सुरक्षित करे। आधार का इस्तेमाल तमाम चीजों के लिए नहीं हो सकता, क्योंकि इसकी हैकिंग भी हो सकती है, लेकिन सरकार अधिकार का बेजा इस्तेमाल कर रही है। इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट कहता है कि आधार के इस्तेमाल पर सरकार गौर करे, तो सरकार इसे संजीदगी से देखेगी। जस्टिस एके सिकरी ने श्याम दीवान से पूछा कि आप बताएं कि अगर कोई बैंक या कंपनी आधार नंबर मांगती है, तो फिर इससे निजता के अधिकार में दखल कैसे होता है? इस पर श्याम दीवान ने कहा कि तमाम एजेंसियां, बैंक, एमसीडी यहां तक कि टैक्सी वाले तक आधार नंबर मांगने लगे हैं। इस तरह यह पब्लिक डोमेन में चला जाता है।
सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने हैरत जताई कि पेंशनर को भी आधार लिंक करने के लिए कहा जा रहा है। जो रिटायर हैं, उनकी एकमात्र आमदनी के मामले में भी आधार मांगा जा रहा है। दीवान ने कहा कि दूसरे देश से भी आकर कोई आधार बनवा सकता है। अगर कोई घोषणा करता है कि वह अमुक जगह पर 182 दिन या उससे ज्यादा समय से रह रहा है, तो उसका आधार बन जाता है। रिहायशी प्रमाण के लिए 182 दिन तक एक जगह रहना जरूरी होता है। इसका कोई सत्यापन नहीं होता। देखा जाए तो कोई भी विदेशी खुफिया एजेंसी अपने लोगों का आधार बनवा सकती है।
याचिकाकर्ता के वकील ने जस्टिस जे. चेलमेश्वर, जस्टिस रोहिंटन नरिमन और जस्टिस बोबडे की ओर से दिए गए फैसले का उल्लेख करते हुए दलील दी कि जो भी डाटा लिया जा रहा है, वह वैध तरीके से इस्तेमाल होना चाहिए। निजता के अधिकार में मानवीय गरिमा समाहित है। सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों में भी निजता का अधिकार संरक्षित है। निजता जीवन जीने के लिए अत्यंत जरूरी अधिकार है। मानवीय गरिमा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आधार नंबर नागरिकता का प्रमाण नहीं हो सकता। जबकि पासपोर्ट ऑफिस ने इसे आवासीय प्रमाणपत्र के तौर पर मांगना शुरू कर दिया है? क्या आधार के लिए लिया जाने वाला डाटा निजता का उल्लंघन है या नहीं, इस मामले की सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है।