भारत और आसियान के देश आर्थिक उन्नति के रास्ते मिलकर तय करेंगे

नई दिल्ली,भारत और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के संघ यानी आसियान ने आर्थिक मोर्चे मिल कर काम करने का इरादा जाहिर किया है। देशों ने सीमा पार से होने वाले अपराधों को रोकने और एक दूसरे के साथ जानकारी साझा करने पर भी सहमति व्यक्त की है। आसियान के देश समुद्री सुरक्षा,आतंकवाद पर भी मिल कर काम करने को सहमत हो गए हैं। भारत एवं आसियान के बीच परिवहन एवं डिजीटल कनेक्टिविटी को और मजबूत करने का संकल्प है।
दिल्ली में भारत आसियान मैत्री रजत जयंती वर्ष के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा आसियान के नेताओं ने दिल्ली घोषणापत्र को स्वीकार कर लिया है। जिसमें दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों और भारत के बीच आपसी संस्कृतियों के आदान प्रदान की बात की गई है। भारत ने सभ्यतागत संपर्क को दोनों के बीच सहयोग की मज़बूत बुनियाद बताया है। दिल्ली घोषणापत्र में गत 25 वर्षों से भारत आसियान संवाद के तीन स्तंभों – राजनीतिक-सुरक्षा, आर्थिक तथा सामाजिक-सांस्कृतिक सहयोग का जिक्र करते हुए दोनों पक्षों के बीच शांति, प्रगति एवं आर्थिक तरक्की की प्रभावी कार्ययोजना की प्रगति पर ख़ुशी जाहिर की गई है।इसके पहले 25वीं वर्षगांठ के उत्सव के अवसर पर मोदी ने म्यामार की स्टेट कॉउंसलर डॉ ऑंग सान सू ची, वियतनाम के प्रधानमंत्री महामहिम न्यूयेन शुआन फुक और फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो रोआ डुटरेट के साथ अलग-अलग द्विपक्षीय बैठकें की। आसियान-भारत स्मारक शिखर सम्मेलन में भाग लेने और इस वर्ष 26 जनवरी को होने वाले गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि बनना स्वीकार करने के लिये भारत आगमन पर प्रधानमंत्री ने तीनों नेताओं का स्वागत किया। म्यामार की स्टेट कॉउंसलर ऑंग सान सूची के साथ प्रधानमंत्री मोदी की बैठक में परस्पर हित के विभिन्न विषयों, द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत बनाने के साथ प्रधानमंत्री मोदी की सितंबर 2017 में म्यामार यात्रा के दौरान लिये गये महत्वपूर्ण निर्णयों को आगे बढ़ाने के विषय पर बातचीत हुई। उधर,प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने आसियान के अध्‍यक्ष सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सेइन लूंग के लेख की प्रशंसा की है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा ‘’आसियान के अध्‍यक्ष सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सेइन लूंग ने एक शानदार लेख लिखा है। इस लेख में बहुत सुंदर तरीके से भारत-आसियान संबंधों के समृद्ध इतिहास, मजबूत सहयोग एवं आशावान भविष्‍य का वर्णन किया गया है। भारत के दौरे पर आए सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली सेइन लूंग ने आज द टाइम्‍स ऑफ इंडिया के संपादकीय पन्‍ने पर प्रकाशित ’’सहस्राब्‍दी साझेदारी को पुनरूज्‍जीवित करें : सिंगापुर ने आसियान के साथ भारत के घनिष्‍ठ संघटन में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई है‘’ शीर्षक लेख में लिखा है कि भारत और आसियान के बीच सदियों पुराने व्‍यापार, वाणिज्‍य एवं सांस्‍कृतिक संबंधों ने आपसी रिश्‍तों को मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभाई है। वह लिखते हैं कि हम आसियान – भारत संबंधों के 25 वर्षों का जश्‍न मना रहे हैं जबकि दक्षिण पूर्व एशिया के साथ भारत का संबंध 2000 वर्ष से भी पुराना है। भारत और कंबोडिया, मलेशिया एवं थाइलैंड जैसे देशों के बीच प्राचीन व्‍यापार का पूरा दस्‍तावेज मौजूद है। दक्षिण पूर्व एशियाई संस्‍कृतियों, परंपराओं एवं भाषाओं पर इन प्रारंभिक संपर्कों का पूरा प्रभाव पड़ा है। हम कंबोडिया में सीएम रीप के निकट अंगकोर मंदिर परिसर, इं‍डोनेशिया में योग्‍याकर्ता के निकट बोरोबुदूर एवं प्रमबनन मंदिर एवं मलेशिया में केडाह में प्राचीन कैंडिस जैसे ऐतिहासिक स्‍थलों पर भारतीय हिन्‍दू – बौद्ध प्रभाव देखते है। रामायण इं‍डोनेशिया, म्‍यामां, थाइलैंड सहित दक्षिण – पूर्व एशिया की कई संस्‍कृतियों से जुड़ा है। सिंगापुर का मलय नाम सिंगापुरा है जो संस्‍कृत से लिया गया है तथा इसका अर्थ ‘शेर नगर’ है। प्रधानमंत्री लूंग लिखते हैं कि सिंगापुर ने हमेशा ही आसियान समुदाय में भारत के शामिल होने की वकालत की है। भारत 1992 में एक आसियान क्षेत्रवार संवाद साझीदार बना, 1995 में एक पूर्णकालि‍क संवाद साझीदार बना और 2005 से इसने पूर्व एशिया सम्‍मेलनों (ईएएस) में भाग लेना शुरू किया। ईएएस एक खुली, समावेशी एवं मजबूत क्षेत्रीय संरचना का एक प्रमुख संघटक है और क्षेत्र का रणनीतिक नेताओं के नेतृत्‍व वाला मुख्‍य फोरम है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *