नई दिल्ली,विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराना फिलहाल संभव नहीं है। ऐसा कराने से पहले संविधान में अनेक जटिल बदलाव करने होंगे। आम चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव कराने को लेकर संसदीय समिति की बैठक में विचार विमर्श किया गया। इसमें कानून मंत्रालय और चुनाव आयोग के प्रतिनिधि भी शामिल हुए।
भूपेंद्र यादव की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराए जाने पर चर्चा हुई। दरअसल, चुनाव पर बढ़ते खर्च और कामकाज प्रभावित होने के कारण इस बात पर लंबे समय से विचार किया जा रहा है कि क्यों न विधानसभा और लोकसभा चुनाव को एक साथ करा दिया जाए। काफी समय से कहा जा रहा है कि समय व पैसे की बचत के लिए दोनों चुनावों को एक साथ कराया जाना चाहिए।
बैठक में संसदीय स्थाई समिति को कानून मंत्रालय के प्रतिनिधियों ने बताया कि विधानसभा और लोकसभा चुनावों को एक साथ कराना फिलहाल संभव नहीं है। क्योंकि इसके लिए संविधान में संशोधन कराना होगा। बैठक में मौजूद चुनाव आयोग के नवनियुक्त मुख्य चुनाव आयुक्त ओ पी रावत ने कहा कि चुनाव आयोग को इस प्रस्ताव पर कोई आपत्ति नहीं है और वह विधानसभा व लोकसभा चुनावों को एक साथ कराने पर सहमत है। विपक्ष ने ओ पी रावत के बयान पर आपत्ति जताते हुए कहा कि उन्हें ऐसा बयान नहीं देना चाहिए।
दोनों चुनावों को एक साथ कराना उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। यह संसद के अधिकार का मामला है। बता दें कि हर लोकसभा चुनाव के साथ आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा विधानसभा चुनाव होते हैं। जबकि 2019 के आम चुनाव से 6 से आठ महीने पहले कई राज्यों में चुनाव होंगे। जैसे कि मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा विधानसभा का कार्यकाल मार्च 2018 में खत्म हो रहा है। ऐसे में यहां फरवरी-मार्च में चुनाव हो सकते हैं।
कर्नाटक विधानसभा का कार्यकाल साल 2018 के मई में खत्म हो रहा है। लिहाजा, यहां भी अप्रैल-मई के दौरान चुनाव हो सकते हैं। जबकि भाजपा शासित राजस्थान विधानसभा का कार्यकाल सन 2019 जनवरी में खत्म होगा। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश विधानसभा का कार्यकाल भी इसी समय खत्म होगा। बहरहाल, बदस्तूर इन तीनों राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ ही होंगे। वहीं झारखंड और हरियाणा राज्यों के विधानसभा चुनाव साल 2019 के आम चुनाव के छह महीने बाद होंगे।