सीबीआई, एसटीएफ से भी बदतर साबित हुई,विश्वसनीयता कर ली ख़त्म

भोपाल,प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता के.के. मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर व्यापमं महाघोटाले की जांच कर रही एजेंसी सीबीआई द्वारा मंगलवार को राजधानी भोपाल के जिला न्यायालय में सौंपे गये विभिन्न अभियोग पत्रों में बड़े मगरमच्छों को राजनैतिक दबाववश बचाये जाने पर आक्रोश व्यक्त करते हुए उसकी जांच प्रक्रिया को तत्कालीन जांच एजेंसी एसटीएफ से भी बदतर बताया है.
उन्होंने सीबीआई की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि यदि वह ईमानदार है तो उसे यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि उसने इस महाघोटाले में स्पष्ट प्रमाणों के बाद सामने आये नामों में प्रमुख मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री सुश्री उमा भारती, आरएसएस से जुड़े सुरेश सोनी, तत्कालीन अपर मुख्य सचिव एटोंनी डिसा, जिनके पास परिवहन मंत्रालय का भी जिम्मा था और व्यापमं की चेयरमेन रहीं आईएएस अधिकारी श्रीमती रंजना को आरोपी बनाना तो दूर उसने पूछताछ करना भी मुनासिब क्यों नहीं समझा? मिश्रा ने एक ओर गंभीर आरोप लगाया है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित सीबीआई द्वारा जाँच प्रारंभ करने वाले पहले तत्कालीन डीआईजी (व्यापमं) भोपाल में पदस्थ अपने बेचमेट सहयोगी डीआईजी स्तर के एक अधिकारी के साथ उन्हीं की कार मे रात्रि लगभग 11 बजे से 11.30 बजे के दौरान मुख्यमंत्री से मिलने उनके निवास सीएम हाउस क्यों गये थे, जबकि इस पूरे घोटाले में मुख्यमंत्री की भूमिका पूरी तरह संदिग्ध पाई जा रही है?
मिश्रा ने कहा कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरूण यादव ने भोपाल स्थित सीबीआई कार्यालय में स्वयं पहुंचकर सीबीआई को तत्संबंधित दस्तावेज, पेनड्राईव और सीडी सौंपकर तत्कालीन डीआईजी को प्रमाण सहित जानकारियां उपलब्ध करायीं थी, जिन्हें सीबीआई ने पन्ना पलटना भी शायद उचित नहीं समझा, ऐसा क्यों? मुख्यमंत्री द्वारा व्यापमं महाघोटाले के दौरान उपयोग में लाये जा रहे बीएसएनएल के मोबाईल नं. 9425609655 और उससे संबंध एक एड-ऑन सिम नं. 9425609666 जिसका उपयोग श्रीमती साधना सिंह करती थीं, उनकी कॉल डिटेल को जांच प्रक्रिया में शामिल क्यों नहीं गया? मुख्यमंत्री सहित तीन अन्य मंत्री और एक मंत्राणी जिसे लेकर पुख्ता सबूत मौजूद हैं, उनसे भी पूछताछ क्यों नहीं की गई? डीमेट परीक्षा के सचिव यू.सी. उपरीत, जिन्होंने अपने बयान में स्पष्ट कहा है कि हम चिकित्सा-शिक्षा मंत्री बनते ही उन्हें 10 करोड़ रू. पहुंचा देते थे, जिस दौरान यह घोटाला हुआ उस वक्त चिकित्सा-शिक्षा मंत्रालय मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के ही अधीन था, इस महत्वपूर्ण तथ्य को जांच से परे रखने का कारण क्या है? ऐसा ही मुख्यमंत्री के करीबी और व्यापमं महाघोटाले के एक बड़े किरदार राघवेन्द्रसिंह तोमर को किसके दबाव में गिरफ्तारी के बाद कोर्ट में धारा-164 के तहत बयान करवाकर सरकारी गवाह क्यों बनाया गया, इसे लेकर सीबीआई खामोश क्यों है?
मिश्रा ने कहा कि संविदा शिक्षाकर्मियों की अवैध नियुक्तियों को लेकर भी जो बड़ा घोटाला हुआ है, उसमें भी हाईप्रोफाईल मगरमच्छों को बचाकर सारा ठीकरा पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा पर ही फोड़ा जा रहा है, जब हरियाणा में 3000 शिक्षकों की नियम विरूद्व हुई भर्तियों के आरोपित तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला आज तक जेल में हैं, तो मप्र में प्रभावी चेहरे खुले आम कैसे घूम रहे हैं?

 

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