नई दिल्ली,मोदी सरकार एक फरवरी को पेश होने वाले अपने आखिरी पूर्ण बजट में देश के हर नागरिक को स्वास्थ्य बीमा का तोहफा दे सकती है। केंद्र सरकार देशवासियों को स्वास्थ्य बीमा दिए जाने की योजना बना रही है, ताकि किसी बीमारी की स्थिति में लोगों को इलाज कराने में कोई परेशानी नहीं हो। सूत्रों के अनुसार हेल्थ बीमा कवर तीन से पांच लाख रुपये का हो सकता है। इसके लिए 5,000 करोड़ रुपए का बजट तय किया जाएगा।
सरकार की इस योजना में निजी बीमा कंपनियों को बड़ी भूमिका मिल सकती है। सूत्रों के मुताबिक ट्रस्ट बनाकर स्वास्थ्य बीमा देने पर भी विचार किया जा रहा है। हेल्थ इंश्योरेंस केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित स्कीम के तहत दिया जाएगा। इसमें कुल खर्च का 60 फीसदी केंद्र और 40 फीसदी हिस्सा राज्य सरकार वहन करेगी। सूत्रों का कहना है कि स्वास्थ्य बीमा योजना तीन तरह की होगी। पहली स्कीम में गरीबी रेखा से नीचे वालों को इंश्योरेंस कवर दिया जाएगा। इसे कल्याण स्कीम का नाम दिया जाएगा। दूसरी स्कीम दो लाख रुपये तक के आय वालों के लिए होगी, जिसका नाम सौभाग्य स्कीम होगा। इसके साथ ही दो लाख से ज्यादा आमदनी वाले सभी वर्गों के लिए सर्वोदय स्कीम लाई जा सकती है। गरीबी रेखा से नीचे रहनेवाले और दो लाख से कम आमदनी वालों का प्रीमियम सरकार भरेगी।
इससे ज्यादा की आमदनी वालों से हेल्थ इंश्योरेंस के लिए प्रीमियम लिया जाएगा जो बेहद मामूली होगा। वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, देश में करीब 70 फीसदी लोगों के पास हेल्थ इंश्योरेंस कवर नहीं है। यही कारण है कि बीमार होने पर इलाज के लिए उनके पास उतने पैसे नहीं होते हैं। इसके मद्देनजर हर नागरिकों को स्वास्थ्य बीमा के दायरे में लाने का फैसला किया गया है। इंडस्ट्री चैंबर ऐसोचैम द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार बड़ी-बड़ी कंपनियों में काम करनेवाले आधे से ज्यादा कर्मचारियों का कहना है कि उनकी कंपनियां कर्मचारियों को स्वस्थ और फिट रखने के लिए कोई कार्यक्रम नहीं चलाती हैं। एफएमसीजी, मीडिया और सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित सेवाओं और रीयल एस्टेट समेत अन्य क्षेत्रों की कंपनियों में किए गए सर्वेक्षण में कहा गया है कि कॉर्पोरेट स्वास्थ्य योजना को अपनाकर भारतीय इंडस्ट्री कर्मचारियों की अनुपस्थिति दर में एक फीसदी की कमी लाकर 2018 में 20 अरब डॉलर की बचत कर सकती हैं। करीब 52 फीसदी कर्मचारियों ने खुलासा किया है कि उनकी कंपनी इस तरह की कोई योजना नहीं चलाती है, जबकि बाकी बचे कर्मचारियों में से 62 फीसदी का कहना है कि उनकी कंपनी द्वारा चलाई जा रही योजना में सुधार की जरूरत है।