रायपुर,छत्तीसगढ़ में कांग्रेस विधायक दल के नेता टी.एस. सिंहदेव और कांग्रेस से बाहर हो चुके विधायक अमित जोगी के बीच नये सिरे से सियासी जंग शुरू हो जाने से माहौल गरमा गया है। दोनों के मध्य छिड़ा ट्वीटर युद्व थाने तक पहुंच गया है। अमित जोगी का आरोप है कि सरगुजा में अदानी की माइंस में विपक्ष की साठगांठ है। क्योंकि नेता प्रतिपक्ष सिंहदेव के पास वहां कोयला परिवहन का काम है। इस आरोप पर भड़के सिंहदेव ने कानूनी जवाब देने का ऐलान किया है, जिसके जवाब में अमित का कहना है कि कांग्रेस नेता आदिवासियों के मान और हानि की चिंता करें। सिंहदेव द्वारा कानूनी जवाब दिये जाने की घोषणा पर अमित जोगी का कटाक्ष है कि उनका मान और हानि छत्तीसगढ़ की जनता के हाथों में है। किसी महल के महाराजा के गुलाम नहीं। छोटे जोगी ने सिंहदेव को चुनौती दी है कि वे उनके खिलाफ मानहानि का दावा करें लेकिन साथ ही सरगुजा जिले के घाटभर्रा के आदिवासी परिवारों के मान और उनकी हानि के लिए अदानी के खिलाफ अदालत जायें। तभी जनता यह मानेगी कि उनका और अदानी का कोई व्यापारिक सम्बंध नहीं है। अमित जोगी के आरोपों को बेबुनियाद ठहराते हुए सिंहदेव ने स्पष्ट किया है कि उनका अदानी से कोई व्यावसायिक सम्बंध नहीं है। इसके साथ ही सिंहदेव का कहना है कि अमित जिन वन अधिकारों की बात कर रहे हैं, उनको कांग्रेस ने लाया था। सिंहदेव ने संभवतः जोगी के जाति विवाद के मद्देनजर तंज किया है कि आदिवासी भाइयों के अधिकारों की लड़ाई ‘सच’ पर आधारित होगी। इस सच शब्द के यहां क्या मायने हैं, यह सिंहदेव ही समझा सकते हैं और जोगी समझ सकते हैं। वैसे आदिवासी हितों की बात करने के लिए आदिवासी होना, न होना जरूरी नहीं है। यहां एक बात गौर करने लायक यह है कि आदिवासी हित के नाम पर जो कांग्रेस अब तक भू-राजस्व संशोधन अधिनियम के जरिये सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को घेर रही थी, अब उसी कांग्रेस के विधायक दल के नेता को आदिवासी वन भूमि पट्टे का मुद्दा उठने पर सफाई देना पड़ रही है कि कांग्रेस ने आदिवासियों को क्या दिलाया और उनके अधिकारों की लड़ाई सच्चाई पर आधारित होगी। इस तरह जो फांस बीते दिनों भाजपा और उसकी सरकार के गले में अटक रही थी, अब अमित ने उसे कांग्रेस के गले में डाल दिया है। वैसे तो सरगुजा में कांग्रेसियों ने अमित जोगी के खिलाफ थाने में रपट दर्ज करवा दी है लेकिन यदि यह मामला सिंहदेव अदालत ले गये तो राजनीतिक तूल पकड़ेगा और यदि शांत बैठ गये तो यह संदेश जायेगा कि अमित के आरोप हवा-हवाई नहीं है। सरगुजा जिले में देश के किसी बड़े कारोबारी से आदिवासी परिवारों के अधिकार के हनन का मामला ठंडे बस्ते में तो नहीं डाला जा सकता। गौरतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव में सरगुजा तथा बस्तर में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया था। इसलिए इस साल के अंत में होने वाले चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस इन दोनों इलाकों में पूरे मनोयोग से सक्रिय है। बस्तर में उसके प्रदेश प्रभारी पी.एल.पुनिया और प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल काफी मेहनत कर रहे हैं तो सरगुजा अंचल में कांग्रेस के महारथी टी.एस. सिंहदेव हैं। भू-राजस्व संशोधन अधिनियम से पीछे हटकर भाजपा सरकार ने डेमेज कंट्रोल का इंतजाम कर लिया है। अब तो उसके भी प्रदेश प्रभारी बस्तर में डेरा डालेंगे और आदिवासी अंचल में 2003 और 2008 जैसी सफलता के लिए व्यूहरचना में व्यस्त होंगे। वैसे 2013 के चुनाव में बस्तर और सरगुजा में कांग्रेस को मिली सफलता के पीछे कई कारण थे। बस्तर से शुरू हुई मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की विकास यात्रा सरगुजा में पूर्ण हुई थी। दोनों अंचलों में इसे व्यापक समर्थन मिला था। फिर क्या कारण है कि दोनों ही जगह जनता ने भाजपा सरकार के कद्दावर नेताओं-मंत्रियों को नकार दिया। उस वक्त विकास यात्रा के समापन अवसर पर भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी और तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह की मौजूदगी में जो ऐतिहासिक भीड़ एकत्र हुई थी, वह वोटों में क्यों नहीं बदली? दरअसल इसके पीछे भाजपा की अंदरूनी खींचतान ही थी। सरगुजा इलाके में भाजपा के बड़े नेता कांग्रेसी स्टाइल में इक-दूजे को निबटाने के फेर में खुद निबट गये। बस्तर भाजपा में भी कम कलह नहीं थी। ऐसी स्थिति में यह नहीं माना जा सकता कि आदिवासी भाजपा का साथ छोड़कर वापस कांग्रेस का हाथ थाम बैठे हैं। वस्तुतः भाजपा ने काम नहीं, चेहरा देखकर जिन्हें आगे किया, उन्हें जनता ने नकार दिया। अकेले मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के काम के आधार पर तो हर जगह सफलता मिलने से रही। प्रत्याशी भी तो कसौटी पर खरा उतरना चाहिए। यहां भाजपा से उम्मीद की जा सकती है कि वह आदिवासी समाज से जुड़ा संवेदनशील मुद्दा छोड़ने के बाद आदिवासी बेल्ट में नये सिरे से सम्भावनायें तलाशेंगी तो कांग्रेस के लिए मुश्किल यह है कि जब जोगी उसे आदिवासी मान-हानि के मुद्दे पर बुरी तरह घेरेंगे तो वह कितना सटीक जवाब दे पायेगी।