भोपाल, एक बार फिर मध्य प्रदेश की किरकिरी हुई है। दुष्कर्म और अपहरण जैसे मामलों में अव्वल रहने के बाद अब प्रदेश में शिशु मृत्यु दर भी सबसे ज्यादा है। इस बात का खुलासा केन्द्र शासन द्वारा हाल ही में जारी सेम्पल रजिस्ट्रेशन सर्वे (एसआरएस-2016) की रिपोर्ट से हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के मामले में प्रदेश दूसरे स्थान पर है जो कि ओडिशा और असम जैसे राज्यों से भी खराब स्थिति है।मप्र में जन्म के सात दिन और 28 दिन के भीतर मरने वाले बच्चों की तादाद भी सर्वाधिक है। मप्र में प्रति एक हजार पर 55 बच्चों की पांच साल तक होने से पहले ही मौत हो जाती है। बता दें कि एक दशक से ज्यादा समय से मप्र शिशु मृत्यु दर में पहले स्थान पर रहा है। मप्र में प्रति एक हजार पर 47 शिशुओं की मौत हो जाती है। साल 2015 की रिपोर्ट में यह आंकड़ा 50 था। इसमें 3 अंक की गिरावट आई है।वहीं प्रदेश में प्रति एक हजार बच् में से 24 बच्चे ऐसे हैं जो सात दिन के भीतर और 32 बधो एक माह के भीतर दम तोड़ देते हैं। गौरतलब है कि सरकार की लाख योजनाओं के बावजूद भी शिशु मृ्त्यु दर में कमी आने का नाम नहीं ले रही है। सरकार भले ही दस्तक अभियान जैसी विभिन्न स्वास्थ्य योजनाओं और अन्य प्रयासों का दावा करे लेकिन ये जमीनी हकीकत से परे है।प्रदेश में हर साल निमोनिया ,दस्त रोग, गंभीर कुपोषण और एनीमिया के चलते बच्चों की मौत हो जाती है। जिसके फलस्वरूप आंकड़ों में सुधार आने की बजाय बढोत्तरी हो जाती है।