भारत में बच्चे पैदा होने की दर 2.2 हुई , मुस्लिम सबसे आगे

नई दिल्ली, हिंदू और मुस्लिमों को छोड़कर देश में रहने वाले अन्य समुदायों में बच्चे पैदा करने की दर में खासी कमी आई है। इन समुदायों में जितने लोगों की मौत होती है, उससे कम बच्चों का जन्म हो रहा है। इसका अर्थ यही है कि यदि बच्चे इसी रफ्तार से पैदा होते रहे तो भविष्य में इन समुदायों की आबादी मौजूदा संख्या से भी कम हो जाएगी। बच्चे पैदा होने की दर में कमी हिंदुओं और मुसलमानों में भी आई है, लेकिन यह दर अब भी हम दो हमारे दो के आदर्श वाक्य से कहीं ज्यादा है।
सन 2015-16 में हुए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक हिंदुओं में बच्चे पैदा करने की दर 2.1 पर आ गई है, जबकि 2004-05 में यह आंकड़ा 2.8 का था। पिछले आंकड़े के लिहाज से देखें तो यह बड़ी गिरावट है। मुस्लिमों में बच्चे पैदा करने की दर अब भी देश के अन्य समुदायों के मुकाबले अधिक है। मुस्लिम समाज में प्रति परिवार यह आंकड़ा 2.6 है। हालांकि 2004-05 के 3.4 के आंकड़े की तुलना में यह बड़ी गिरावट कही जा सकती है।
सन 2015-16 में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे का धार्मिक आधार पर डेटा निकालने पर यह खुलासा हुआ है। देश में सबसे कम फर्टिलिटी रेट 1.2 जैन समाज का है। देश में शिक्षा के स्तर में भी जैन समाज के लोग सबसे आगे हैं। इसके बाद सिखों में बच्चे पैदा करने की दर 1.6, बौद्धों और नव-बौद्धों में 1.7 और ईसाइयों में 2 है। भारत के कुल फर्टिलिटी रेट की बात करें तो यह 2.2 है।
यदि आर्थिक आधार पर विश्लेषण किया जाए तो न्यूनतम आय वर्ग वाले परिवारों में बच्चों की दर सबसे अधिक 3.2 है, वहीं सबसे उच्च आय वर्ग लोगों में यह आंकड़ा सबसे कम 1.5 है। सामाजिक आधार पर आंकड़ों का विश्लेषण करें तो सबसे पिछड़े जनजातीय समाज में फर्टिलिटी रेट 2.5 है, जबकि अनुसूचित जाति में यह 2.3 है और पिछड़े वर्ग का आंकड़ा 2.2 है। सवर्ण जातियों में यह आंकड़ा सबसे कम 1.9 है। यही नहीं युवा महिलाओं से पैदा होने वाले बच्चों की संख्या अधिक उम्र की महिलाओं की तुलना में खासी कम है। इससे पता चलता है कि बीते दो दशकों में खासा बदलाव आया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *