भोपाल,आदि गुरु शंकराचार्य एकात्म यात्रा ने आज विदिशा, भोपाल, मंदसौर, नीमच, ग्वालियर और नरसिंहपुर जिलों में 431 किलोमीटर की दूरी तय करने के साथ 686 धातु पात्रों का संकलन किया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान धर्मपत्नी श्रीमती साधना सिंह चौहान के साथ विदिशा के जन-संवाद में शामिल हुए। आज हुई यात्रा और जन-संवादों में एक लाख 750 लोगों ने भाग लिया।
विदिशा के 28 गाँव-कस्बों से गुजरी यात्रा का 21 स्थानों पर स्वागत एवं पादुका पूजन किया गया, जिसमें 5 कलश-यात्रा, 5 शोभा-यात्रा, 20 उप-यात्रा और तकरीबन 5 हजार लोग शामिल हुए। विदिशा में हुए मुख्य जन-संवाद में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, सरसंघ चालक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मोहनराव भागवत, स्वामी अखिलेश्वरानंद, श्रीनिवास राजू महाराज, उद्यानिकी, खाद्य प्र-संस्करण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) सूर्यप्रकाश मीणा, विधायक निशंक जैन, गोवर्धनलाल उपाध्याय, वीर सिंह पवार, सुल्तान सिंह शेखावत, यात्रा समन्वयक शिव चौबे, मेला एवं तीर्थ प्राधिकरण अध्यक्ष विजय दुबे आदि उपस्थित थे। भोपाल जिले में बैरसिया से यात्रा का प्रवेश हुआ और दो स्थानों पर स्वागत एवं पादुका पूजन किया गया।
जन-संवाद में मुख्यमंत्री बोले
विदिशा,देश में एक नहीं अनेक मत-मतान्तर दिखाई देते हैं। ऐसे में आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा बताए गए अद्वैतवाद दर्शन में विश्व की समस्याओं का समाधन निहित है। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने यह बात गुरुवार को विदिशा में एकात्म यात्रा में जन-संवाद को सम्बोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि विश्व में आंतकवाद जैसी प्रवृत्तियों को समाप्त करने और शांति स्थापित करने की दिशा में शंकराचार्य का एकात्म दर्शन सही दिशा दे सकता है। मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि शंकराचार्य द्वारा समाज सुधार के लिए दो हजार वर्ष पूर्व किये गये प्रयास अकल्पनीय हैं। उन्होंने देश को पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण से जोडऩे का जो कार्य किया, वह अद्वितीय है। आज भी उत्तराखण्ड में स्थित बद्रीनाथ मंदिर में दक्षिण भारत के नम्बूदिरी ब्राह्मण पुजारी हैं। यह देश को एक करने के लिए शंकराचार्य द्वारा देश की संस्कृति को जोडऩे का अभूतपूर्व प्रयास है। उन्होंने देश को जियो और जीने दो का दर्शन दिया।
एकता-भाईचारे का संदेश : भागवत
सरसंघ संचालक मोहन भागवत ने कहा कि हमारे देश के सभी पंथ-संप्रदाय एकता और भाईचारे का संदेश देते हैं। हम प्रवचनों के माध्यम से दी गई सीख को अपने आचरण में उतारें। ऊँच-नीच से परे रहकर समाज के हर वर्ग के कल्याण के लिए काम करें। ऐसा करने से ही शंकराचार्य के वेदांत दर्शन को हम आत्मसात कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि अद्वैत वेदांत की भावना को मिलकर आगे बढ़ाएं। अद्वैत वेदांत ही सम्पूर्ण विश्व को मैत्री का संदेश देता है।