लखनऊ,उत्तर प्रदेश सरकार ने ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण के लिये रविवार सार्वजनिक स्थानों पर लगे स्थायी लाउडस्पीकरों के बारे में विस्तृत दिशा निर्देश जारी किये है। यह आदेष इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ के निर्देश के बाद दिए गए हैं। प्रमुख सचिव गृह अरविंद कुमार ने यहां बताया कि उच्च न्यायालय के ध्वनि प्रदूषण -विनियमन और नियंत्रण के प्राविधानों का कड़ाई से अनुपालन के संबंध में निर्देश के बाद राज्य सरकार ने इस संबंध में विस्तृत दिशा निर्देश जारी किये है। उच्च न्यायालय ने पिछले महीने 20 दिसंबर को उत्तर प्रदेश में ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण पर असफल रहने पर कड़ी नाराजगी जताई थी, और राज्य सरकार से पूछा था कि प्रदेश के सभी धार्मिक स्थलों मस्जिदों, मंदिरो, गुरूद्वारो या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर लगे लाउडस्पीकर संबंधित अधिकारियों से इसकी इजाजत लेने के बाद ही लगाये गये है।
हाईकोर्ट के निर्देष के बाद राज्य सरकार द्वारा दस पन्नों का लाउडस्पीकर के सर्वेक्षण का प्रोफार्मा जारी किया है। इसमें स्थायी रूप से लाउडस्पीकर लगाने की इजाजत लेने का फार्म, जिन लोगो ने लाउडस्पीकर लगाने की इजाजत नही ली है उनके खिलाफ की गयी कार्रवाई की विस्तृत जानकारी देने को कहा गया है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंड पीठ ने 20 दिसंबर को राज्य सरकार से पूछा था कि क्या प्रदेश में मंदिरों, मस्जिदों, गुरूद्वारों और गिरिजाघरों एवं अन्य सभी सरकारी स्थानेां पर बजने वाले लाउडस्पीकरों के लिए अनुमति ली गयी है। अदालत ने केंद्र सरकार द्वारा 2000 में ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए बनाये गये नियमों का कड़ायी से पालन न होने पर राज्य सरकार को कड.ी फटकार लगायी थी। अदालत की लखनऊ खंडपीठ ने प्रदेश के धार्मिक स्थलों एवं अन्य सरकारी स्थानेां पर बिना सरकारी अनुमति के लाउडस्पीकरों के बजाने पर सख्त एतराज जताया था। अदालत ने सरकार से पूछा था कि क्या जगह-जगह इन सभी स्थानों पर लगे लाउडस्पीकरों को लगाने के लिए लिखित में संबधित अधिकारी की अनुमति हासिल की गयी है। यदि अनुमति नही ली गयी है तो ऐसे लोगों के खिलाफ क्या कार्यवाही की गयी है। साथ ही अदालत ने यह भी पूंछा था कि जिन जगहों पर बिना अनुमति के लाउडस्पीकर बज रहे है उनके खिलाफ संबधित अधिकारियेां ने क्या कार्यवाही की है।
अदालत ने प्रमुख सचिव गृह एवं यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन को यह सारी सूचना अपने व्यक्तिगत हलफनामें के जरिये एक फरवरी तक पेश करने का आदेश दिया था। साथ ही अदालत ने दोनों अफसरेां को चेताया भी था कि यदि उक्त सारी सूचना नहीं दी जाती तो दोनों अफसर अगली सुनवायी के समय व्यक्तिगत रूप से हाजिर रहेंगें। 20 दिसंबर को यह आदेश न्यायमूर्ति विक्रम नाथ एवं न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन की बेंच ने एक स्थानीय वकील मोतीलाल यादव की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर पारित किया था। याची ने वर्ष 2000 में केंद्र सरकार द्वारा ध्वनि प्रदूषण केा रोेकने के संबध में बनाये गये न्वायज पाल्यूशन रेग्यूलेशन एण्ड कंट्रोल रूल्स 2000 के प्रावधानों का प्रदेश में कड़ायी से पालन न हेाने का आरोप लगाते हुए मांग की थी सरकार इन प्रावधानेां का लागू करवाये और इसमे किसी भी तरह की कोताही न की जाये। रूल्स 2000 के पैरा 5 में प्रावधान है कि बिना संबधित अधिकारी की अनुमति के लाउडस्पीकरेां या किसी अन्य पब्लिक एड्रेस सिस्टम का प्रयोग नही किया जायेगा।
यह भी प्रावधान है कि आडिटोरियम ,कांफ्रेस रूम, कम्यूनिटी हाल जैसे बंद स्थानों को छोड़कर रात 10 बजे से प्रातः छह बजे तक लाउडस्पीकरों का प्रयोग नही किया जायेगा। हांलाकि राज्य सरकार को यह छूट है कि वह एक कैलेन्डर वर्ष में अधिकतम 15 दिनों के लिए सांस्कृतिक या धार्मिक अवसरों के मददेनजर रात 10 बजे से रात 12 बजे के बीच ध्वनि प्रदूषण कम करने की शर्तो के साथ लाउडस्पीकर बजाने की छूट दे सकती है। अदालत ने मसले पर गंभीरता से विचार करने के बाद पाया कि अदालतेां ने इस मामले पर बार बार आदेश जारी किये है परंतु फिर भी ध्वनि प्रदूषण के ऐसे ही मामलों को लेकर अक्सर याचिकाये ंदाखिल होती रहती है। अदालत ने कहा था कि जब 2000 मे ध्वनि प्रदूषण को रेग्युलेट करने के लिए नियम बना दिये गये हैं तो फिर अफसर उन का कड़ायी से पालन क्यों नही करते।