बीजिंग,चीन पाकिस्तान के खिलाफ अमेरिका के सख्त तेवरों का फायदा उठा सकता है। पहले से ग्वादर बंदरगाह को विकसित कर रहा चीन अपने दूसरे सैन्य बेस के लिए भी पाक से डील कर सकता है। चीन की नजर चाबहार बंदरगाह के करीब स्थित जिवानी पोर्ट पर है। अगर चीन जिवानी पोर्ट को हासिल कर लेता है तो यह भारत के लिए एक नई चुनौती होगी। अमेरिका-पाक के बिगड़ते संबंधों के बीच चीन के सरकारी मीडिया ने कहा है कि ट्रंप की टिप्पणी के बाद पाकिस्तान और चीन के बीच आर्थिक व रक्षा संबंध और मजबूत होंगे। पाकिस्तान अपने सदाबहार दोस्त चीन के और करीब जा सकता है। बता दें कि नए साल के पहले दिन से ही अमेरिका पाकिस्तान को झटके दे रहा है। पहले ट्रंप ने ट्वीट कर आतंकियों को संरक्षण देने के लिए पाक को लताड़ लगाई और फिर सैन्य मदद रोक दी। गौरतलब है कि ट्रंप ने एक जनवरी को ट्वीट कर साफ कहा था कि पाकिस्तान आतंकियों को शरण दे रहा है। अमेरिका की यह तल्खी पाकिस्तान और चीन के संबंधों के लिए फायदेमंद हो सकती है। यही वजह है कि इस्लामाबाद ने द्विपक्षीय कारोबार और वित्तीय लेनदेन में चीन की मुद्रा को अनुमति देने का फैसला लिया। वैसे भी, चीन पहले से 50 अरब डॉलर के चीन-पाक आर्थिक गलियारे के जरिए पाक में भारी-भरकम निवेश कर रहा है। चीन के सरकारी मीडिया में प्रकाशित इस रिपोर्ट में अमेरिकी मीडिया की एक खबर के हवाले से कहा गया है कि चीन विदेशी जमीन पर अपना दूसरा सैन्य अड्डा स्थापित करने के लिए पाकिस्तान से बात कर रहा है। चीन इसके जरिए अपने सामरिक रूप से महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों की क्षमता बढ़ाना चाहता है। बताया जा रहा है कि यह क्षमता जिवानी में स्थापित की जा सकती है। यह पोर्ट ईरान के चाबहार के करीब है। सबसे महत्वपूर्ण है, इसकी लोकेशन। चाबहार के करीब होने के कारण इससे ईरान और भारत के हित भी प्रभावित हो सकते हैं, क्योंकि चाबहार का विकास भारत, ईरान और अफगानिस्तान मिलकर कर रहे हैं। इसमें भारत का हित है, क्योंकि भारत चाबहार के जरिए अपने निर्यात को अफगानिस्तान तक पहुंचाने के लिए ट्रेड कॉरिडोर चाहता है। जिवानी पोर्ट पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में चीन द्वारा विकसित किए जा रहे ग्वादर पोर्ट से काफी कम दूरी पर है। ग्वादर के जरिए चीन मुंबई तट के ठीक ऑपोज़िट अरब सागर में प्रवेश का रास्ता पाना चाहता है। जानकारों का कहना है कि चीन की मुद्रा को अनुमति देना पाकिस्तान का कोई नाटकीय पॉलिसी चेंज नहीं है। वुहान यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के फाइनेंस एंड सिक्यॉरिटीज इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर डांग डेंगजिन ने कहा कि कई पाकिस्तानी कंपनियां पहले से ही युआन स्वीकार करने लगी हैं। उन्होंने कहा कि इसकी टाइमिंग काफी महत्वपूर्ण है।