LOC पर शहीद होने वाले सैनिकों के परिजनों को भी मिलेगी समान पेंशन

नई दिल्ली,रक्षा मंत्रालय ने लंबे इंतजार के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) और नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर देश की रक्षा करते हुए शहीद होने वाले जवानों के परिवार के लिए समान पेंशन व्यवस्था लागू कर दी है। मंत्रालय ने चीन के खिलाफ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए सेना के ऑपरेशन में दुर्घटनाग्रस्त होने या फिर मारे जाने वाले सैनिकों के लिए भी समान पेंशन योजना को मंजूरी दे दी है।
पिछले काफी समय से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर डटे सैनिकों और पाकिस्तान-इंटरनेशनल बॉर्डर की सीमाओं पर डटे रहने वाले सैनिकों के परिवारों को मिलने वाली सुविधाओं और पेंशन में भेदभाव का मुद्दा उठाया था। जो सैनिक एलएसी पर अपनी सेवा देते हुए मारे जाते हैं उन्हें सामान्य फैमिली पेंशन ही अब तक मिलती रही है। दूसरी तरफ, जो सैनिक पाक से सटे बॉर्डर या फिर इंटरनेशनल बॉर्डर पर तैनात होते हैं उन्हें लिबरलाइज्ड फैमिली पेंशन का लाभ मिलता है। उन सैनिकों को एक्स-ग्रेशिया जैसी सुविधाएं भी मिलती हैं।
रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने एलएसी पर तैनात सैनिकों को भी पेंशन सुविधाओं में होने वाले भेदभाव को खत्म करने के लिए आदेश दिया है। रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने बुधवार को बताया लिबरलाइज फैमिली पेंशन के तहत सैलरी के बराबर पेंशन मिलती है (आखिरी सैलरी की रकम) और फैमिली पेंशन के तहत सिर्फ सैलरी का 30 फीसदी हिस्सा ही मिलता है। सेना में पेंशन के स्तर पर होने वाले इस भेदभाव को खत्म किए जाने की मांग लंबे समय से उठाई जा रही थी। सेना अधिकारियों का कहना है कि लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश की सीमाओं (4057 किमी) वाले क्षेत्र में सैनिकों के लिए देश की सरहद की रक्षा करना बहुत चुनौतीपूर्ण काम है। 778 किमी. वाले एलओसी और 198 किमी. क्षेत्र में फैले इंटरनेशनल बॉर्डर की तुलना में एलएसी पर कई बार परिस्थितियां ज्यादा चुनौतीपूर्ण होती हैं। यह मामला और अधिक संवेदनशील इसलिए भी हो गया है क्योंकि डोकलाम विवाद के बाद अधिकतम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी एलएसी पर सैनिकों की तादाद बढ़ाई गई है। चीन की तरफ से मिलने वाली चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए अरुणाचल प्रदेश में 1986 में ऑपरेशन फॉल्कन शुरू किया गया था। हालांकि, इसके बाद से ही सभी सरकारों ने इस पर कभी खुलकर कोई टिप्पणी नहीं की।

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