बिलासपुर,महात्मा गांधी ने 80 साल पहले कहा था कि मेरा दृढ़ मत है कि इस देश की सही शिक्षा यह होगी कि स्त्री को अपने पति से भी ‘न’ कहने की कला सिखाई जाए। उसे यह बताया जाए कि अपने पति की कठपुतली या उसके हाथों में गुड़िया बनकर रहना उसके कर्तव्य का अंग नहीं है। उसके अपने अधिकार और कर्तव्य हैं। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में दर्जनों महिलाओं ने यह कला सीख ली है। यहां सरपंच पति संस्कृति पर कड़ा प्रहार हुआ है। पंचायत के कामकाज में पतियों के हस्तक्षेप से परेशान महिला सरपंचों ने एकजुट हो बगावत छेड़ दी। यह आसान काम नहीं था। पति के खिलाफ बगावत करना अपने ही घर में आग लगाने के समान था। पति ने तो मुंह फुलाया ही, सास-ससुर और पूरे कुनबे का विरोध सहना पड़ा। लेकिन कर दिखाया, पति को ‘न’ कह दिया।
मस्तूरी ब्लॉक की 50 महिला सरपंच अब घूंघट से बाहर आकर अपनी जिम्मेदारी बखूब संभाल रही हैं। घर क्या, जो कभी घूंघट से भी बाहर नहीं निकली थीं, अब अपने दम पर पंचायतों का संचालन कर रही हैं। आरक्षण नियमों के चलते पति व परिजनों ने अपने प्रभाव से चुनाव जितवाकर उन्हें ग्राम पंचायत में प्रतिष्ठित तो कर दिया था, लेकिन मनमुताबिक काम करने की आजादी नहीं दी थी। पंचायत की बैठक के दौरान घर से पति के साथ जाना और उनके द्वारा बताए विषयों को ही एजेंडे के रूप में बैठक में शामिल कराना, यही इनका काम था। इन्हें ग्रामीणों का ताना भी सुनना पड़ता था। महिला सरपंच इससे तंग आ गईं। अंतत: सभी 50 महिला सरपंच एकजुट हो गईं। जिन ग्राम पंचायतों में महिलाएं सरपंच व पंच हैं, वहां उनके पति सरपंच के रूप में संबोधित करते थे। लेकिन यहां अब ऐसा नहीं हो रहा है। ग्राम पंचायत लोहर्सी की सरपंच गौर बाई गौड़ कहती हैं, अब तक पति के बताए अनुसार ही कामकाज कर रही थी लेकिन अब मैं आजाद हूं। नारी शक्ति पंचायत संघ की सदस्या हेमलता साहू कहती हैं कि संविधान ने महिलाओं को अधिकार संपन्न तो बनाया, मगर पति व परिजनों के हस्तक्षेप के कारण महिलाएं इससे वंचित ही रहीं। हमने पतियों व परिजनों की दखलंदाजी से परेशान होकर ही विरोध करना शुरू किया।
छत्तीसगढ़ में मस्तूरी ब्लॉक की 50 महिला सरपंच अब घूंघट से बाहर आकर संभाल रही हैं अपनी जिम्मेदारी
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