करोंद मंडी में हुए सरकारी गेहूं-चावल घोटाले में नया खुलासा,ट्रांसपोर्ट्स आपूर्ति निगम को डीडी बनाकर देते थे

भोपाल,राजधानी की करोंद मंडी में हुए सरकारी गेहूं-चावल घोटाले में एक और नया खुलासा हुआ है।ट्रांसपोर्टर संस्थाओं को गेहूं-चावल सप्लाई करने के लिए डीडी बनवाकर नागरिक आपूर्ति निगम (नान) में देते थे। नान के अधिकारी बिना किसी तस्दीक के ट्रांसपोर्टर को खाद्यान्न सप्लाई करने के लिए डिस्ट्रीब्यूशन ऑर्डर (डीओ) बनाकर दे देते थे। ट्रांसपोर्टर भी संस्था को बिना सूचना दिए खाद्यान्न उठवाकर सप्लाई कर देते थे।  नागरिक आपूर्ति निगम के कार्यालय से प्राप्त हुए डीडी में से दो डीडी (डिमांड ड्राफ्ट) ऐसे पाए गए हैं, जो कल्याणकारी संस्थाओं के संचालकों ने नहीं, बल्कि ट्रांसपोर्ट्स ने बनवाए हैं। यह खुलासा तब हुआ, जब 33 कल्याणकारी संस्थाओं के खाद्यान्न के 52 डीडी की जांच की गई। भोपाल की 63 कल्याणकारी संस्थाओं को सप्लाई किए जा रहे गेहूं-चावल में जमकर घोटाला हो रहा था। जांच में तीन संस्थाएं ऐसी मिली हैं, जिनका पता अभी तक नहीं मिल पाया है। सूत्रों की माने तो यह तीनों संस्थाएं फर्जी हो सकती हैं। वर्तमान में खाद्य विभाग के पास कुल 52 में से 36 डीडी की जानकारी आ चुकी है। ये डीडी सेंट्रल बैंक आफ इंडिया, कोआपरेटिव बैंक, एक्सिस बैंक, बैंक आफ इंडिया से बनवाए गए थे। 36 में से 20 डीडी सिर्फ बैंक ऑफ इंडिया के थे।  डीडी की जानकारी के लिए जब बैंक के सर्किल मैनेजर ने खाद्य विभाग के अधिकारियों से ब्रांच कोड मांगा तो नान ही नहीं, बल्कि जिला प्रशासन के अफसर भी सकते में आ गए। जैसे ही ब्रांच कोड सामने आया, तत्काल 20 डीडी की डीटेल और बनवाने वाले का नाम व उसका खाता नंबर आदि जानकारी सामने आ गई। जिससे इस बात की पुष्टी हो गई कि ट्रांसपोर्टर ने ही डीडी बनवाए थे। एसबीआई से बनवाए गए 16 डीडी की जांच अब तक पूरी नहीं हो पाई है। खाद्य विभाग के अधिकारी पिछले चार दिन से इन डीडी के ब्रांच कोड पता करने के लिए एसबीआई टीटी नगर शाखा के चक्कर लगा रहे हैं। अब ब्रांच मैनेजर जल्दी ही कोड उपलब्ध कराने की बात कह रहे हैं। इसके बाद जांच पूरी होते ही सोमवार तक रिपोर्ट कलेक्टर को सौंप दी जाएगी। 33 कल्याणकारी संस्थाओं की जांच में दो संस्थाएं ऐसी सामने आई हैं, जिनके संचालकों ने अपने बयानों में कबूल किया है कि जब संस्था के पास फंड का अभाव होता था, तब डीडी ट्रांसपोर्टर से बनवाए जाते थे। जब फंड आ जाता था उस वक्त ट्रांसपोर्टर को चैक से पेमेंट कर दिया जाता था। इससे भी साफ है कि कुछ संस्थाओं के डीडी ट्रांसपोर्टर बनवाते थे।

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