भोपाल, प्रदेश सरकार ने सभी विभागों से कहा है कि 1996 के पहले बने सभी जाति प्रमाण-पत्र वैध माने जाएंगे।ऐसे लोगों के जाति प्रमाण-पत्र को लेकर अब किसी भी तरह की जांच नहीं की जाएगी। इसकी वजह यह है कि सरकार के पास इनका कोई रिकॉर्ड ही नहीं है। मालूम हो कि कई विभाग और एजेंसियों द्वारा इनकी जांच के लिए कलेक्टरों से प्रतिवेदन मांगा जा रहा था और रिकॉर्ड न होने के कारण उन्हें फर्जी माना जा रहा था। राज्य सरकार ने अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़ा वर्ग के उन लोगों को बड़ी राहत दी है, जिनके जाति प्रमाण-पत्र अगस्त 1996 के पहले बने हैं। सरकार ने कहा कि 1962 में जारी किए गए दिशा-निर्देशों के तहत कोई भी राजपत्रित अधिकारी, तहसीलदार और रेंजर को जाति प्रमाण-पत्र जारी करने के अधिकार दिए गए थे। इसके बाद 1975 में यही अधिकार मंत्रियों को भी दे दिए गए थे। इन अधिकारों में फिर एक बार संशोधन कर 1987 में अतिरिक्त तहसीलदार सहित कलेक्टर, एडिशनल कलेक्टर, एसडीओ, सिटी मजिस्ट्रेट, परियोजना प्रशासक एकीकृत आदिवासी परियोजना को भी अधिकृत कर दिया गया था। अलग-अलग लोगों के पास अधिकार होने से अधिकांश कार्यालयों में इनका रिकॉर्ड सुरक्षित नहीं है।
सरकार ने कहा है कि 1996 से पहले जब इन अफसरों को जाति प्रमाण-पत्र जारी करने का अधिकार था, तब जाति प्रमाण-पत्र के लिए न तो आवेदन का प्रावधान था, न ही कोई प्रारूप। अलग-अलग जगह से जाति प्रमाण-पत्र बनने के कारण इनका कहीं भी एक जगह रिकॉर्ड भी नहीं रखा जाता था। फर्जी जाति प्रमाण-पत्रों से संबंधित शिकायतों में बहुत सारे प्रकरण ऐसे हैं, जो 1996 के पहले के हैं। छानबीन समिति भी रिकॉर्ड न होने और पुष्टि न होने के कारण उन्हें फर्जी करार दे देती थी। यही वजह है कि सरकार ने कहा कि ऐसे लोगों को जानबूझकर परेशान न किया जाए। सरकार ने कहा है कि उन सभी लोगों के जाति प्रमाण-पत्र सरकार के निर्देशों के तहत ही बने हैं, इसलिए सिर्फ रिकॉर्ड नहीं होने के कारण उन्हें फर्जी नहीं ठहराया जा सकता है।