वकीलों की बेहिसाब फीस चिंताजनक, कानून बनाए केंद्र सरकार : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली,सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों की बढ़ती फीस पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि वकीलों की बेहिसाब फीस के चलते गरीब लोगों को न्याय नहीं मिल पाता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार को ऐसा कानून बनाना चाहिए जिससे वकीलों की फीस निर्धारित की जा सके।
सुप्रीम कोर्ट के कई आदेशों और लॉ कमिशन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति आदर्श के. गोयल और यूयू ललित की बेंच ने कहा अब समय आ गया है कि केंद्र सरकार कानूनी कार्यकलापों में हस्तक्षेप करे, जिससे गरीब लोगों को भी न्याय के लिए वकीलों की व्यवस्था सुनिश्चित हो। ऐसा भी देखा गया है कि वकील अपने मुवक्किल से कोर्ट द्वारा दी गई आर्थिक सहायता में भी हिस्सा मांगते हैं।
कोर्ट ने कहा यह गलत है और ऐसे वकीलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। बेंच ने कहा इसमें कोई शक नहीं कि कानूनी पेशा न्याय प्राप्त करने के लिए बेहद जरूरी है। कानून बनाए रखने में इसका महत्वपूर्ण स्थान है, लेकिन नागरिकों को न्याय दिलाना और उनके मौलिक व अन्य अधिकारों की रक्षा करना भी इस पेशे का महत्वपूर्ण कर्तव्य है। क्या कानूनी पेशे में किए जा रहे कदाचार के आधार पर किसी को न्याय दिए जाने से रोका जा सकता है?
बेंच ने कहा कि लॉ कमीशन की रिपोर्ट में वकालत के लिए एक नियामक निकाय बनाने का सुझाव दिया गया है, ताकि इस पेशे में जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके। वकीलों की ऊंची फीस की चर्चा करते हुए कमीशन ने कहा यह संसद का कर्तव्य है कि वह वकालत के पेशे के लिए एक सही फीस निर्धारित करे। सन 1998 में आई लॉ कमीशन की 131वीं रिपोर्ट में कहा गया है कि वकीलों की फीस निर्धारित करने के लिए पहला कदम संसद की ओर से उठाया जाना चाहिए। लॉ कमीशन की 266वीं रिपोर्ट में कहा गया है कि वकीलों के पेशेगत कदाचार के कारण ब़ड़ी संख्या में मामले लंबित हैं।
वकीलों की अघोषित हड़तालों के कारण भी न्याय प्रक्रिया को काफी क्षति पहुंचती है। इससे विभिन्न वाद ज्यादा लंबे समय तक चलते रहते हैं। लॉ कमीशन ने यह भी सुझाव दिया है कि बार काउंसिल के संविधान में भी उचित संशोधन किया जाना चाहिए। पिछले काफी सालों में केंद्र सरकार ने इस पर कानून लाए जाने की कोई पहल नहीं की है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस रिपोर्ट का संदर्भ लेते हुए सरकार को उचित कदम उठाने को कहा है।
कोर्ट ने कहा, ‘हालांकि 131वी रिपोर्ट 1998 में पेश की गई थी लेकिन सरकार की तरफ से वकालत की फी निर्धारित करने के लिए कोई कानून नहीं लाया गया।
पेशेगत कदाचार के लिए मजबूत नियामक की आवश्यकता है। कानून प्रशासन तभी सफल हो सकता है, जब वकालत के पेशे का सही तरीके नियमन किया जाए ताकि अनुच्छेद 39ए के तहत सभी नागरिकों की न्याय तक पहुंच सुनिश्चित की जा सके। बेंच ने कहा हमें उम्मीद है कि सरकार में संबंधित अथॉरिटी इस पर विचार करेगी और एक ऐसी नियामक व्यवस्था बनाएगी ताकि वकालत के पेशे में मूल्यों की स्थापना की जा सके और संविधान के अनुच्छेद 39ए के तहत सभी लोगों को न्याय उपलब्ध कराया जा सके।

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