नई दिल्ली, प्रयोगशाला में किए गए परीक्षणों में साबित हो गया है कि पूर्वांचल के जंगलों में उगने वाले पत्थरचूर की पत्तियों का कुलथी के बीजों के साथ इस्तेमाल करने से पथरी पूरी तरह गल जाती है। गोरखपुर विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान और रसायन विज्ञान विभागों में किए गए 15 सालों के संयुक्त शोध में इसकी पुष्टि हो गई है। दोनों पौधे पथरी के इलाज में उपयोगी पाए गए हैं। इसके चार शोध पत्र अंतर्राष्ट्रीय जर्नल क्रिस्टल ग्रोथ में छप चुके हैं।
ग्रामीण इलाकों में सदियों से यह मान्यता है कि एक पौधा पत्थर को भी गला देता है, इसीलिए इसका नाम पत्थचूर पड़ा। ऐसी ही मान्यता कुलथी के बीज के बारे में भी है। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में बॉटनी के विभागाध्यक्ष प्रो. वीएन पांडेय और केमिस्ट्री के एमेरिट्स प्रोफेसर ईश्वर दास ने शोध छात्र एसके गुप्ता व शोएब अंसारी के साथ इन दोनों पौधों पर 15 साल में रिचर्स पूरा किया है। इसमें बीएचयू के पूर्व वीसी प्रो. आपी रस्तोगी का भी सहयोग रहा है, पहले प्रो. रस्तोगी गोरखपुर विश्वविद्यालय में ही तैनात थे।
रिसर्च टीम ने पहले पथरी (कैल्शियम ऑक्सीलेट और कैल्शियम फास्फेट) का लैब में अध्ययन किया। फिर पत्थरचूर (ट्राईएंथमा मोनोगाइना) की पत्तियों और कुलथी (मैक्रोटाइलोमा यूनिफ्लोरम) के बीज के वैज्ञानिक गुणों का अध्ययन किया। बीआरडी मेडिकल कॉलेज से आपरेशन कर निकाली गई स्त्री-पुरुषों की पथरियां मंगाई। इसमें 30 से 55 साल तक की महिलाओं व 25 से 40 साल तक की उम्र के पुरुषों की पथरियां शामिल थीं। लैब में अलग-अलग इन पथरियों को दोनों आयुर्वेदिक पौधों के एक्सट्रैक्ट में रखा गया। एक से तीन महीने में पथरियां पहले खंडित हुई और अंत में गल कर पानी घोल में मिल गई। यह प्रयोग अलग-अलग तापमान और मौसम में किया। हर बार यही परिणाम सामने आया।
बाद में कंडक्टोमेट्रिक, नेफ्लोमेट्रिक टाइट्रेशन, यूवी विजुअल, आईआर पोटेशोमेट्रिक मेजरमेंट, ऑप्टिक फोटोग्राफी, फ्लेमफोटोमीटर आदि विधियों से जांच की गई। इसमें पता चला कि दोनों आयुर्वेदिक पौधों के एक्सट्रेक्ट के इस्तेमाल से आक्जीलेट व फास्फेट का निर्माण नहीं हुआ यानी पथरी नहीं बनी। इस शोध में सीएसआईआर दिल्ली ने डीडीयू को सहयोग दिया। अलग-अलग शोध परिणामों के आधार टीम ने चार शोध पत्र जर्नल ऑफ क्रिस्टल ग्रोथ को भेजे। संस्था ने परीक्षण के बाद सभी शोध पत्रों का प्रकाशन किया।
मेडिकल साइंस के मुताबिक महिलाओं की किडनी में सामान्यतया कैल्शियम ऑक्सीलेट और पुरुषों में कैल्शियम फास्फेट का स्टोन होता है। किडनी में पहले एक छोटा कण जमता है फिर बायो क्रिस्टलाइजेशन से पथरी बन जाती है। गॉलब्लैडर और पैंक्रियाज की पथरियां दोनों ग्रंथियों से निकलने वाली पित्त और रस के गाढ़ा होने से बनती हैं। सामान्यत: पथरी किडनी, गाल ब्लैडर और पैंक्रियाज में होती है। एलोपैथी में इसका एक मात्र उपचार सर्जरी ही है। आपरेशन में 30 हजार से एक लाख रुपए तक खर्च आता है। बिना चीरा लगाए लीथोट्रिप्सी से पथरी तोड़ने की तकनीक भी प्रचलित हो रही है। इसमें लेजर से शरीर के बाहर से ही किरणों को फोकस कर पथरी तोड़ देते हैं, जो यूरिन से बाहर निकल जाती है। यह केवल किडनी की पथरी में ही इस्तेमाल होने वाली तकनीक है। हर तरह की पथरी में मरीज को असहनीय दर्द होता है।