अहमदाबाद, गुजरात विधानसभा की 45 से ज्यादा सीटों पर पाटीदारों का प्रभत्व है और 100 ज्यादा सीटों पर पाटीदार समीकरण बदलने की स्थिति में हैं. यही वजह है कि राजनीतिक दल उसे अपने पक्ष में करने का हरसंभव प्रयास कर रहे हैं.गुजरात में विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच पाटीदारों को अपने साथ लाने की भाजपा और कांग्रेस के बीच होड लगी है.
पाटीदार भाजपा की परंपरागत वोट बैंक है और उसे उम्मीद है कि आगामी चुनाव में भी वह उसके साथ ही रहेंगे. जबकि कांग्रेस पाटीदारों को अपने पक्ष में करने का हरसंभव प्रयास कर रही है, जिसमें उसने कितनी सफलता मिलेगी यह आनेवाला वक्त ही बताएगा. पिछले दो साल से चल रहा पाटीदार आरक्षण आंदोलन फिलहाल भले ही सुषप्त अवस्था में हो, लेकिन उसकी वजह से गुजरात की राजनीति के समीकरण बदल गए हैं. बदले हुए समीरकरणों का असर आगामी चुनाव पर होना तय है. आरक्षण के लिए संघर्ष पाटीदारों का गुजरात में अच्छा खासा प्रभुत्व है. राज्य की 46 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में पाटीदारों की मजबूत पकड़ है. जबकि 105 सीटें ऐसी हैं जहां पाटीदारों की निर्णायक भूमिका है. पाटीदारों की मजबूत पकड़वाली सीटों में घाटलोडिया, ठक्करबापानगर, साबरमती, ऊंझा, विसनगर, बेचराजी, मेहसाणा, विजापुर, मोरबी, टंकारा, राजकोट पूर्व, राजकोट दक्षिण, राजकोट ग्रामीण, जसदण, गोंडल, जेतपुर, धोराजी, धारी, अमरेली, लाठी, सावरकुंडला, राजूला, जामनगर ग्रामीण और जामनगर उत्तर, माणसा, जामजोधपुर, माणावदर, जूनागढ़, विसावदर, सयाजीगंज, बोटाद, ओलपाड, मजूरा, लूणावाडा और आणंद इत्यादि सीटें शामिल हैं. इसके अलावा 105 सीटों पर पाटीदार निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं. ऐसे में हार्दिक पटेल का कांग्रेस के साथ जाना भाजपा के लिए चिंता का सबब है. गुजरात में भाजपा किसी कीमत पर सत्ता गंवाने को तैयार नहीं है. लेकिन हार्दिक पटेल का पाटीदारों में वर्चस्व के कारण भाजपा को थोड़ा बहुत नुकसान हो सकता है.