रायपुर,संसदीय सचिवों की नियुक्ति को लेकर हाईकोर्ट में सुनवाई आज भी नहीं हो सकी। इससे पहले 31 अक्टूबर को भी इसी मामलों में सुनवाई आगे बढ़ा दी गई थी। हाईकोर्ट ने इस मामले में कहा कि संसदीय सचिव की नियुक्ति जब राज्यपाल ने नहीं की तो उनका संवैधानिक दायरा नहीं बनता। उनकी नियुक्ति यदि मंत्री पद पर राज्यपाल ने नहीं की है तो उन्हें कार्य न करने दिया जाये। यह रोक तब तक लागू रहेगी जब तक कि संसदीय सचिवों की नियुक्ति पर अंतिम फैसला न आ जाये। इस आदेश के बाद संसदीय सचिवों के तमाम अधिकार समाप्त हो गये हैं। यहां तक कि उनके सुरक्षा अनुदान पर भी रोक लगा दी गई है। ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही संसदीय सचिवों के मामले में एक फैसला दिया था कि उनकी नियुक्ति की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे. चेल्लेमेश्वर, जस्टिस आर.के. अग्रवाल व अभय मनोहर सप्रे की बैच ने कहा कि भारतीय संविधान में संसदीय नियुक्ति का कोई प्रावधान नहीं है लिहाजा यह असंवैधानिक है। सुप्रीम कोर्ट ने संसदीय सचिवों की नियुक्ति पर कड़ी टिप्पणियां की हैं। असम में संसदीय सचिवों की नियुक्ति और उन्हें अतिरिक्त लाभ देने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई गई थी। 11 संसदीय सचिव जिनमें शिवशंकर पैकरा, लखन देवांगन, तोखन साहू, राजू सिंह क्षत्री, अंग्रेश जांगड़े, रूपकुमारी चौधरी,गोवर्धन मांझी लाभचंद बाफना, मोतीराम चंद्रवंशी, चंपादेवी पावले, सुनीति राठिया इस संबंध में सरकार का कहना है कि संसदीय सचिव लाभ का पद नहीं है। जबकि याचिकाकर्ताओं का कहना है कि संसदीय सचिवों को राज्यमंत्री का दर्जा हासिल है इसके लिए सरकार की ओर से जारी आदेशों के बतौर सबूत याचिकाकर्ता मो.अकबर ने पेश की।