पुणे, देश में पहली बार डेंगू के नए वायरस की पुष्टि की गई है। पुणे स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरॉलजी पुणे (एनआईवी) के वैज्ञानिकों ने इसे चिन्हित किया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह नया वायरस एशियन जीनोटाइप का है। इसकी वजह से सिंगापुर में सन 2005 में और श्रीलंका में सन 2009 में महामारी फैली थी। यह जीनोटाइप वायरस भारत में पहले कभी नहीं पाया गया था। इसने भारत में हाल ही में प्रवेश किया है।
उन्होंने कहा यह वायरस चिंता का विषय है, क्योंकि यह सन 2005 में सिंगापुर में और सन 2009 में श्रीलंका में भयानक महामारी फैला चुका है। वैज्ञानिकों ने बताया इसी तरह का वायरस 2012 में तमिलनाडु में और 2013 में केरल में भी इस बीमारी के प्रकोप की वजह बना था। वायरॉलजी नाम के जर्नल में इसी महीने इस रिसर्च के नतीजे प्रकाशित किए गए हैं, जिसका नाम है इमर्जेंस ऑफ द एशियन जीनोटाइप ऑफ डीईएनवी-1 इन साउथ इंडिया’ भारत में डेंगू के चार तरह के वायरस का संचार हो रहा है। पहला है- डेंगू वायरस टाइप-1, दूसरा है- डेंगू टाइप-2, तीसरा है- डेंगू टाइप-3 और चौथा है- डेंगू टाइप-4। रिसर्च में बताया गया है कि डेंगू टाइप-1 का एशियन जीनोटाइप वायरस दक्षिण भारत में डेंगू से पीड़ित मरीजों के खून के नमूनों में पाया गया है।
रिसर्च के नतीजों का अर्थ यह नहीं है कि एशियन जीनोटाइप वायरस अमेरिकी-अफ्रीकी जीनोटाइप डेंगू टाइप-1 से ज्यादा प्रचलित हो गया है। अमेरिकी-अफ्रीकी जीनोटाइप डेंगू टाइप -1 वायरस सन 1940 से भारत में सक्रिय है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये दोनों ही तरह के डेंगू टाइप -1 वायरस तमिलनाडु और केरल में इस इस समय फैले हुए हैं। विशेषज्ञ महाराष्ट्र, दिल्ली और दूसरे राज्यों से भी सैंपल लेकर इस बात का अध्ययन करने में लगे हैं कि एशियन जीनोटाइप डेंगू टाइप-1 वायरस इन इलाकों में मौजूद है या नहीं। एनआईवी के डायरेक्टर वरिष्ठ वैज्ञानिक देवेन्द्र मौर्य ने कहा एशियन जीनोटाइप वही वायरस है, जिसकी वजह से सिंगापुर में सन 2005 में और श्रीलंका में सन 2009 में महामारी फैली थी। यह जीनोटाइप वायरस पहले भारत में नहीं पाया जाता था। इसने भारत में हाल ही में प्रवेश किया है।