नई दिल्ली,देश में नेताओं पर आपराधिक मामलों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। ऐसे में जनता के साथ-साथ कोर्ट तक ने चिंता व्यक्त की है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट सख्त ने सख्ती दिखाई है। कोर्ट ने जनप्रतिनिधियों के खिलाफ मुकदमे निपटाने के लिए स्पेशल कोर्ट के गठन का आदेश दिया है। कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि केंद्र एक ओर तो स्पेशल कोर्ट बनाने का बात करता है और दूसरी ओर कहता है कि यह राज्यों का मामला है। मामले की अगली सुनवाई के लिए कोर्ट ने 31 दिसंबर की तारीख तय की है। कोर्ट ने सरकार से कहा है कि स्पेशल कोर्ट बनाने के लिए फंड और संसाधनों की पूरी योजना दाखिल करे। उधर, केंद्र की मोदी सरकार ने कहा कि वह जनप्रतिधियों के खिलाफ आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए तैयार है इसलिए फास्ट ट्रैक सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट बनाने के समर्थन में है। इन मामलों की सुनवाई कम से कम वक्त में पूरी होनी चाहिए। सरकार ने कहा कि सजायाफ्ता जनप्रतिनिधियों के आजीवन चुनाव लडऩे पर रोक के लिए विचार किया जा रहा है। चुनाव आयोग भी सख्तचुनाव आयोग ने कोर्ट में याचिकाकर्ता के पक्ष में बात रखी। सुनवाई के दौरान अपने जवाब में कहा कि सजायाफ्ता सांसदों और विधायकों के चुनाव लडऩे पर आजीवन प्रतिबंध लगना चाहिए। 6 हफ्ते में जवाब दे सरकारसुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा- दागी नेताओं के केस की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट बनने चाहिए और इसमें कितना वक्त और फंड लगेगा यह 6 हफ्तों में बताएं। याचिकाकर्ता से भी सवालकोर्ट ने याचिकाकर्ता से भी सवाल किया कि बिना तथ्य के आपने याचिका कैसे दाखिल कर दी? क्या आप हमसे चाहते हैं कि हम केवल कागजी फैसला दे दें और कह दें कि भारत में राजनीति का अपराधीकरण हो चुका है। दो जजों की पीठ कर रही सुनवाईसुप्रीम कोर्ट के दो जज जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस नवीन सिन्हा की दो सदस्यीय बेंच इस मामले पर सुनवाई कर रही है। जजों ने कहा- आपराधिक मामलों में राजनीतिक व्यक्तियों की दोष सिद्धि की दर एक नया आयाम खोलेगी।वकील अश्विनी ने लगाई याचिकाकोर्ट ने दोषी ठहराए राजनीतिज्ञों को सजा पूरी होने के बाद छह साल के लिए चुनाव लडऩे के अयोग्य बनाने वाले जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान को असंवैधानिक करार देने के लिये वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां कीं। याचिकाकर्ता वकील अश्विनी उपाध्याय ने बेंच से कहा कि यह एक महत्वपूर्ण पहलू है और वह राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड और निर्वाचन आयोग के पास उपलब्ध आंकड़ों के विवरण के साथ हलफनामा दाखिल करेंगे। इस पर बेंच ने टिप्पणी की, हम नहीं समझते कि निर्वाचन आयोग के पास से ये आंकड़े एकत्र करना आसान होगा क्योंकि मुकदमे निचली अदालतों और विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित हैं।नेता की पढ़ाई को भी आधार बनाने की बातकेंद्र ने अपने हलफनामे में कहा था कि सांसदों-विधायकों को दोषी ठहराए जाने की स्थिति में उन पर उम्र भर के लिए प्रतिबंध लगाने का अनुरोध विचार योग्य नहीं है। केंद्र ने इसी तर्क के आधार पर याचिका खारिज किए जाने की भी मांग की थी। याचिका में चुनाव लडऩे वाले व्यक्तियों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता और अधिकतम आयु सीमा निर्धारित करने के लिए केंद्र और निर्वाचन आयोग को निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है।किस दल में कितने बागी नेताभाजपा 523कांग्रेस 248आप 26