नईदिल्ली, अभिनेता नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी अपनी बायोग्राफी ‘एन ऑर्डिनरी लाइफ’ के कारण आजकल चर्चाओं में है। नवाज एक छोटे से शहर से मुम्बई आकर अभिनेता बने हैं। उत्तरप्रदेश के मुजफ्फनगर जिले के एक छोटे से गांव बुढ़ाना में नवाज के पिता एक किसान थे। नवाज़ नौ भाई-बहनों में से एक हैं। नवाज़ का परिवार काफी बड़ा था और आमदनी सीमित थी तो ज़ाहिर है उनका बचपन काफी अभावों भरा रहा है। वहां से शुरू हुई उनकी यात्रा आज यहां तक पहुंची है।
नवाज़ुद्दीन ने मुंबई में अपने पहले प्यार से लेकर अपनी शादी तक के किस्से इसमें शेयर किए हैं।
मुजफ्फरनगर जिले के छोटे-से कस्बे बुढ़ाना से शुरूआती स्कूलिंग के बाद नवाज़ हरिद्वार पहुंचे जहां उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी यूनिवर्सिटी से स्नातक किया। उसके बाद वो दिल्ली आ गए। दिल्ली में उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में एडमिशन ले लिया और साल 1996 में वहां से निकले। उसके बाद नवाज़ ‘साक्षी थिएटर ग्रुप’ के साथ जुड़ गए जहां उन्हें मनोज वाजपेयी और सौरभ शुक्ला जैसे कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिला। इसके बाद वो मुंबई चले आये और यहां से उनकी असली संघर्ष की दास्तान शुरू हुई।
मुंबई आने से पहले दिल्ली में नवाज़ुद्दीन को अपने खर्चे के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। बहुत ढूंढने के बाद उन्हें एक जगह सिक्यूरिटी गार्ड की नौकरी मिली। इस नौकरी को पाने के लिए भी नवाज़ को कुछेक हज़ार रुपये गारंटी के रूप में जमा कराने थे। जो उन्होंने किसी दोस्त से उधार लेकर भरे। वे शारीरिक रूप से काफी कमजोर थे, जब भी मौका मिलता वो ड्यूटी के दौरान बैठ जाया करते। एक दिन मालिक ने उन्हें बैठा हुआ देख लिया और उसी दिन उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। नवाज़ कहते हैं कि उस कंपनी ने गारंटी के लिए जमा की गयी रकम भी उन्हें नहीं लौटाई।
बहरहाल, क्या आप जानते हैं 1999 में आई फ़िल्म ‘शूल’ में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी एक वेटर की भूमिका में थे। फ़िल्म में एक्टर मनोज वाजपेयी अपनी पत्नी (रवीना टंडन) और बिटिया के साथ एक रेस्तरां में जाते हैं। वहीं मेनू कार्ड लेकर ऑर्डर लेने और भोजन परोसने भर का छोटा सा रोल निभाया था नवाज़ ने! इतना ही नहीं आमिर की फ़िल्म ‘सरफ़रोश’ में भी नवाज़ुद्दीन एक मुखबिर की छोटी सी भूमिका में दिखे थे। उस वक़्त शायद ही किसी ने सोचा था कि छोटे मोटे किरदार करने वाला यह आर्टिस्ट किसी दिन लीड रोल भी करेगा। जैसा कि हमने ‘फ्रीकी अली’, ‘मांझी और ‘बाबू मोशाय बन्दुकबाज़’ में देखा।
नवाज़ बताते हैं कि मुंबई में संघर्ष का एक ऐसा समय था कि वह एक समय खाना खाते तो दूसरे वक़्त भूखा रहना होता। उन्होंने कई बार हार मानने की सोची और सब कुछ छोड़कर वापस गांव जाने का सोचा। उनके साथ मुंबई आए सभी साथी अपने-अपने घरों को लौट गए, लेकिन वो डटे रहे।
मुंबई में वो लगातार रिजेक्ट होते रहे क्योंकि सबको हीरो चाहिए था और बकौल नवाज़ वो हीरो मेटेरियल नहीं थे। इसके बाद उन्होंने कई छोटी-बड़ी फ़िल्मों में छोटे-छोटे किरदार किये। लेकिन, असली पहचान उन्हें ‘पीपली लाइव’, ‘कहानी’, ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’, ‘द लंच बॉक्स’ जैसी फ़िल्मों से मिली। शाह रुख़ ख़ान के साथ ‘रईस’ में भी उनके अभिनय की खूब तारीफ हुई। फ़िल्मफेयर अवार्ड तक जीत चुके नवाज़ इनदिनों अपनी बायोग्राफी ‘एन ऑर्डिनरी लाइफ’ के कारण चर्चा में हैं!