विश्वकर्मा ने एक रात में किया था देव सूर्य मंदिर का निर्माण

औरंगाबाद, बिहार के औरंगाबाद जिले के देव में स्थित प्राचीन सूर्य मंदिर अनोखा है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने एक रात में किया था। यह देश का एकमात्र ऐसा सूर्य मंदिर है, जिसका दरवाजा पश्चिम की ओर है। ऐतिहासिक त्रेतायुगीन पश्चिमाभिमुख सूर्य मंदिर अपनी विशिष्ट कलात्मक भव्यता के साथ-साथ अपने इतिहास के लिए भी विख्यात है। औरंगाबाद से 18 किलोमीटर दूर देव में स्थित सूर्य मंदिर करीब सौ फीट ऊंचा है। काले और भूरे पत्थरों की नायाब शिल्पकारी से बना यह सूर्य मंदिर ओड़िशा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर से मिलता-जुलता है। मंदिर के निर्माणकाल के संबंध में मंदिर के बाहर लगे एक शिलालेख पर ब्राह्मी लिपि में लिखित और संस्कृत में अनूदित एक श्लोक के मुताबिक, इस मंदिर का निर्माण त्रेता युग के बीत जाने के बाद इला-पुत्र पुरुरवा ने आरंभ करवाया। शिलालेख से पता चलता है कि सन् 2017 में इस पौराणिक मंदिर के निर्माण काल को एक लाख पचास हजार सत्रह वर्ष पूरे हो गए हैं। हालांकि इतिहासकार शिलालेख के उक्त दावे को सही नहीं मानते। मंदिर में सात घोड़ों के रथ पर बैठे भगवान सूर्य अपने तीनों रूपों, उदयाचल (सुबह), मध्याचल (दोपहर) और अस्ताचल (अस्त) में विद्यमान हैं। पूरे देश में यही एकमात्र सूर्य मंदिर है, जो पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है। यह सूर्य मंदिर स्थापत्य और वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है। सीमेंट या चूना-गारा के प्रयोग किए बिना आयताकार, वर्गाकार, आर्वाकार, गोलाकार, त्रिभुजाकार आदि कई रूपों और आकारों में काटे गए पत्थरों को जोड़कर बनाया गया यह मंदिर अत्यंत आकर्षक है। जनश्रुतियों के मुताबिक, एक राजा ऐल एक बार देव इलाके के जंगल में शिकार खेलने गए थे। राजा कुष्ठ रोग से पीड़ित थे। शिकार खेलते समय उन्हें प्यास लगी। उन्होंने अपने आदेशपाल को लोटा भर पानी लाने को कहा। वह पानी की तलाश करते हुए एक गड्ढे के पास पहुंचा, जो पानी से लबालब भरा हुआ था। वहां से उसने एक लोटा पानी लेकर राजा को दिया। राजा के हाथ में जहां-जहां पानी का स्पर्श हुआ, वहां का कुष्ठ ठीक हो गया। राजा ने बाद में उस गड्ढे में स्नान किया और उनका कुष्ठ ठीक हो गया। उसके बाद उसी रात जब राजा रात में सोए तो सपना आया कि जिस गड्ढे में उन्होंने स्नान किया था, उसमें तीन मूर्तियां हैं। राजा ने उन मूर्तियों को एक मंदिर बनाकर स्थापित किया। कार्तिक एवं चैत्र महीने में छठ करने कई राज्यों से लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। मंदिर के समीप स्थित सूर्यकुंड का विशेष महत्व है। मंदिर के पुजारी सच्चिदानंद पाठक ने बताया कि रोज सुबह चार बजे भगवान को घंटी बजाकर जगाया जाता है। उसके बाद पुजारी भगवान को नहलाते हैं, ललाट पर चंदन लगाते हैं, नया वस्त्र पहनाते हैं। यह परंपरा आदि काल से चली आ रही है। भगवान को आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ भी सुनाया जाता है।

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