अशोकनगर,जिले के शासकीय स्कूलों की हालत दिनों-दिन खराब होती जा रही है। स्कूलों की खराब हालत की दशा सुधारने के लिए जिम्मेदार भी कोई कदम नहीं उठा रहे हैं। जिसके कारण छात्र-छात्राओं को मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल पा रही। हालत यह है कि कई स्कूलों में छात्राओं के लिए शौचालय की व्यवस्था तक नहीं है। जिस कारण छात्राओं को खुले में शौच जाना पड़ रहा है।
हम बात कर रहे हैं ईसागढ़ ब्लॉक के अन्तर्गत आने वाली ग्राम पंचायत पौरूखेड़ी की। जहां स्थित प्राथमिक एवं माध्यमकि विद्यालय में छात्राओं के लिए शौचालयों की व्यवस्था तक नहीं है। बताते हैं कि पहले जिन शौचालय का निर्माण कराया गया था वह गुणवत्ता विहीन होने के कारण और देखरेख के अभाव में बनने के साथ ही खराब हो गए। वर्तमान में स्थिति यह है कि इन शौचालयों में गेट तक नहीं बचे हैं। वहीं पूरी तरह से खण्डहर हो चुके इन शौचालयों में गंदगी के ढेर लगे हुए हैं। यही हाल प्राथमिक विद्यालय तिघरी एवं आदिवासी चक्क के भी हैं। यहां पर काफी लम्बे समय से शौचालय बंद पड़े हुए हैं। ऐसे में सबसे यादा परेशानी छात्राओं को हो रही है। ग्रामीणों का कहना है इस संबंध में कईयों बार शिकायत भी कर चुके हैं। लेकिन शौचालय की स्थिति में कोई सुधार नहीं आया।
अलग से कराया जाना था शौचालय का निर्माण:
केन्द्र सरकार ने दो अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान शुरू करने के बाद प्रत्येक प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में छात्राओं के लिए अलग से शौचालय का निर्माण कराया जाना था, जिससे उनकी पढ़ाई में काई परेशानी न आ सके। लेकिन सरकारी स्कूल के शौचालयों की इस दशा से स्कूली छात्रों को शौचालय जाने में परेशानी हो रही हैं।
जिम्मेदार नहीं दे रहे ध्यान:
शासकीय स्कूलों की दशा सुधारने के लिए कई तरह की योजनाएं संचालित की जा रही हैं। इसके साथ ही यह योजनाएं सही ढंग से संचालित हो भी रही हैं या नहीं इनकी मॉनिटरिंग करने की जिम्मेदारी भी स्थानीय संबंधित अधिकारियों को सौंपी गई है। इसके बाद भी नगर और ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित होने वाले यादातर स्कूलों में समस्या निरंतर बनी हुई है। प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों के शौचालयों की दशा को लेकर अफसरों को भी हकीकत का पता है। शौचालय सभी प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में हैं लेकिन उनकी मौजूदा स्थिति पर गौर करें तो सब खस्ताहाल हैं। कुछ एक विद्यालयों में शौचालय की हालत ठीक है तो उनके अंदर पानी की व्यवस्था नहीं है। ग्रामीणों की मानें तो बच्चे यूं ही खुले में शौच को नहीं जाते बल्कि उन्हें मजबूरी में खुले में जाना पड़ता है।