ये यात्रा देशवासियों की, अनुभूति की एक यात्रा -PM

नई दिल्ली, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आकाशवाणी पर प्रसारित ३६ वें ‘मन की बात’ कार्यक्रम से अपने आलोचकों को जवाब देते हुए कहा कि यह उनके मन की बात नहीं है बल्कि भारत की सकारात्मक शक्ति, देश के कोने कोने से लोगों की भावनाओं, इच्छाओं, शिकायतों को सामने रखने का एक मंच है जो प्रेरणा देने के साथ ही सरकार में सुधार का वाहक बन रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मन की बात’ ने, एक प्रकार से भारत की जो सकारात्मक शक्ति है, देश के कोने-कोने में जो भावनाएँ भरी पड़ी हैं, इच्छाएँ हैं, अपेक्षाएँ हैं, कहीं-कहीं शिकायत भी है…… एक जन-मन में जो भाव उमड़ते रहते हैं ‘मन की बात’ ने उन सब भावों से मुझे जुड़ने का एक बड़ा अद्भुत अवसर दिया।’
पीएम मोदी ने कहा, ‘‘ मैंने कभी ये नहीं कहा है कि मेरे मन की बात है। ये ‘मन की बात’ देशवासियों के मन से जुड़ी हैं, उनके भाव से जुड़ी हैं, उनकी आशा-अपेक्षाओं से जुड़ी हुई हैं। और जब ‘मन की बात’ में बातें मैं बताता हूँ तो उसे देश के हर कोने से जो लोग मुझे अपनी बातें भेजते हैं, आपको तो शायद मैं बहुत कम कह पाता हूँ लेकिन मुझे तो भरपूर खज़ाना मिल जाता है।’’
उन्होंने कहा कि चाहे ई मेल पर हो, टेलीफोन पर हो, माइ गाव पर हो, नरेन्द्र मोदी एप पर हो, इतनी बातें मेरे तक पहुँचती हैं। ‘‘ अधिकतर तो मुझे प्रेरणा देने वाली होती हैं। बहुत सारी, सरकार में सुधार के लिए होती हैं। कहीं व्यक्तिगत शिकायत भी होती हैं तो कहीं सामूहिक समस्या पर ध्यान आकर्षित किया जाता है। और मैं तो महीने में एक बार आधा घंटा आपका लेता हूँ, लेकिन लोग, तीसों दिन ‘मन की बात’ पर अपनी बातें पहुँचाते हैं।’’ पीएम मोदी ने कहाकि उसका परिणाम ये आया है कि सरकार में भी संवेदनशीलता, समाज के दूर-सुदूर कैसी-कैसी शक्तियाँ पड़ी हैं, उस पर उसका ध्यान जाना, ये सहज अनुभव आ रहा है। और इसलिए ‘मन की बात’ की तीन साल की ये यात्रा देशवासियों की, भावनाओं की, अनुभूति की एक यात्रा है। और शायद इतने कम समय में देश के सामान्य मानव के भावों को जानने-समझने का जो मुझे अवसर मिला है और इसके लिए मैं देशवासियों का बहुत आभारी हूँ। उन्होंने कहा कि ‘मन की बात’ में मैंने हमेशा आचार्य विनोबा भावे की उस बात को याद रखा है। आचार्य विनोबा भावे हमेशा कहते थे ‘अ-सरकारी, असरकारी।
मैंने भी ‘मन की बात’ को, इस देश के जन को केंद्र में रखने का प्रयास किया है। राजनीति के रंग से उसको दूर रखा है। तत्कालीन, जो गर्मी होती है, आक्रोश होता है, उसमें भी बह जाने के बजाय, एक स्थिर मन से, आपके साथ जुड़े रहने का प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि मैं ज़रूर मानता हूँ, अब तीन साल के बाद सामाजिक क्षेत्र के विशेषज्ञ, विश्वविद्यालय, शोध अध्येता, मीडिया विशेषज्ञ ज़रूर इसका विश्लेषण करेंगे। इसके मजबूत पक्ष और कमियों को हर चीज़ को उजागर करेंगे। और मुझे विश्वास है कि ये विचार-विमर्श भविष्य ‘मन की बात’ के लिए भी अधिक उपयोगी होगा, उसमें एक नयी चेतना, नयी ऊर्जा मिलेगी। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस पार्टी समेत कई विपक्षी दल और विपक्षी नेता प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ कार्यक्रम की आलोचना करते रहे हैं और सरकार पर तंज कसते हुए काम की बात करने पर जोर दिया है।

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