चंडीगढ़, कांग्रेस ने हरियाणा में नए फार्मूले के साथ आगे बढ़ने की तैयारी की है। भाजपा ही नहीं बल्कि कांग्रेस भी हरियाणा में जाट नेतृत्व से परहेज कर रही है। कांग्रेस ने राज्य में पार्टी की कमान एक दलित के हाथों से लेकर दूसरे दलित को सौंपने की योजना बनाई है। माना जा रहा है कि जल्द ही कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर को पद से हटाकर उनकी जगह कुमारी शैलजा को प्रदेश में पार्टी की कमान सौंपी जा सकती है। बता दें कि हरियाणा में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के बीच काफी समय से वर्चस्व की जंग चल रही है। हुड्डा इस बात पर अड़े थे कि राज्य में पार्टी की कमान अशोक तंवर से लेकर उनके गुट के किसी सदस्य को सौंपी जाए।
सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस हुड्डा की तंवर को हटाने की मांग पर तो राजी है, लेकिन पार्टी की कमान उनके खेमें के किसी सदस्य को दिए जाने के खिलाफ है। इसके बाद हुड्डा भी पीछे हटने को तैयार हो गए हैं। अब वह अशोक तंवर की जगह किसी को भी नया अध्यक्ष बना देने पर राजी हैं। ऐसे में पार्टी संगठन ने दलित नेता कुमारी शैलजा को पार्टी की कमान सौंपने की योजना बनाई है। शैलजा के नाम पर हुड्डा भी राजी हो गए हैं। पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस महासचिव कमलनाथ ने हुड्डा समेत राज्य के कई वरिष्ठ नेताओं से बातचीत में तंवर की जगह कुमारी शैलजा को आगे लाने पर सहमति जताई थी। अशोक तंवर के साथ हरियाणा विधानसभा में विपक्ष की नेता किरण चौधरी की भी छुट्टी तय मानी जा रही है। उनकी जगह हुड्डा खेमे के किसी सदस्य को प्रतिपक्ष का नेता बनाया जा सकता है।
गौरतलब है कि भूपिंदर सिंह हुड्डा जाट समाज से आते हैं और राज्य में जाट मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है। राज्य में जाट के बाद दूसरी सबसे बड़ी आबादी दलितों की है। कांग्रेस अशोक तंवर को हटाकर हुड्डा खेमे के किसी सदस्य को देती तो इसका दलितों में संदेश गलत जाता। इसी वजह से कांग्रेस नए फार्मूले के साथ आगे बढ़ रही है, ताकि जाट के साथ-साथ दलित भी नाराज नहीं हों। कांग्रेस नेतृत्व को लग रहा है कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी और कांग्रेस विधायक दल में दलित-जाट की जुगलबंदी राज्य में पार्टी के उभार में सहायक साबित होगी। कांग्रेस को लगता है कि दोनों मतदाता एकजुट हो जाते हैं, तो सन 2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में पार्टी परचम लहरा सकती है। कांग्रेस को लगता है कि हरियाणा में खट्टर सरकार के आने के बाद जाट और दलित दोनों हाशिए पर आ गए हैं। खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे हैं। ऐसे राज्य में दलित-जाट की जोड़ी उसके लिए संजीवनी साबित हो सकती है।