अल्मोड़ा,सुनने में शायद अजीब लग सकता हैं कि उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले का एक गांव पिछली आधी सदी से दीमकों के संक्रमण की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। गांव में दीमकों के संक्रमण की यह समस्या इतनी गंभीर है कि इस वजह से कई परिवारों ने अभी तक अपने घर को छोड़ दिया है। वहीं जो परिवार वर्तमान में गांव में निवास कर रहे हैं वे अन्य लोग फर्नीचर खत्म होने व मरम्मत के खर्चे से जूझ रहे हैं। इस त्रासदी का शिकार अल्मोड़ा का लाम्बड़ी गांव बना है। जहां पर कई सारे घरों की छतें तथा फर्नीचर दीमक का शिकार बन चुकी हैं। दीमकों के संक्रमण के बारे में बताते हुए गांव की निवासी पुष्पा देवी ने अपने घर के मुख्य दरवाजे की तरफ इशारा करते हुए कहा दीमकों ने सब कुछ बर्बाद कर डाला है। हमारे दरवाजों और खिड़कियों को देखो। यहां कोई भी नया फर्नीचर नहीं खरीदता, क्योंकि दीमक उसे बर्बाद कर डालते हैं। इस कारण घरों का सारा सामान बेकार हो जाता है।
वहीं इस समस्या से परेशान एक अन्य महिला सरला ने कहा,दूसरे गांवों में जहां बच्चे जंगली जानवरों से डरते हुए बड़े होते हैं। वहीं हमारे दादा-दादी उन कीड़ों के किस्से बताते हैं जो सब कुछ चटकर जाते हैं। इस गांव में अब आर्थिक रूप से कमजोर परिवार ही रुके हैं, जिनके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है। इस समस्या के बारे में विशेषज्ञों ने बताया कि जंगलों का कटना और घर बनाने में प्रयोग होने वाली लकड़ी के किस्म ही दीमकों की इस समस्या के पीछे जिम्मेदार हैं। कुमाऊं यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सी एस नेगी ने बताया कि दीमक मृत लकड़ी पर ही निर्भर रहते हैं। इलाके में हुई वनों की कटाई का परीक्षण भी करना होगा। इन सब वजहों से दीमकों के लिए अनुकूल परिस्थिती बनी होगी।
पूर्व ग्राम प्रधान पद्म सिंह ने बताया,चीजें हाथ से बाहर जा चुकी हैं। कुछ 45 सालों पहले ही यह समस्या शुरू हुई थी। हमने सरकार से अपील की, लेकिन कोई मदद नहीं मिली। वहीं 15 साल पहले गांव छोड़ चुके भवन सिंह नाम के एक पूर्व ग्रामीण ने बताया कि यहां रहना सुरक्षित नहीं रहा था। वैज्ञानिकों की टीम भी यहां का दौरा कर चुकी हैं, लेकिन कोई भी उपाय कारगर नहीं हो सका है। विशेषज्ञों ने यहां पर दीमकों को भगाने के लिए केले के पेड़ों को लगाने का उपाय भी बताया, लेकिन यह टोटका भी कारगार साबित नहीं हुआ है।