नयी दिल्ली,नीति आयोग ने सन 2024 से ‘राष्ट्र हित’ में लोकसभा और विधानसभाओं के लिए एक साथ दो चरणों में चुनाव करवाने का समर्थन किया है। सरकारी थिंक टैंक ने कहा कि भारत में सभी चुनाव एक साथ होने चाहिए ताकि ‘चुनाव प्रचार’ के कारण कामकाज में अनावश्यक व्यवधान नहीं आए। इसमें अधिकतम एक बार कुछ विधानसभाओं के कार्यकाल में या तो कटौती करनी होगी या फिर कुछ के कार्यकाल को विस्तार देना होगा।
तीन वर्ष का कार्य एजेंडा 2017, 2018 से 2019-2020′ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्र हित में इसे लागू करने के लिए संविधान विशेषज्ञों, थिंक टैंक, सरकारी अधिकारियों और विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों सहित विभिन्न पक्षकारों का एक विशेष समूह गठित किया जाना चाहिए। यह समूह इसे लागू करने संबंधी सिफारिशें करेगा। तीन वर्ष का कार्य एजेंडा 2017, 2018 से 2019-2020′ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट के अनुसार, इसमें संवैधानिक और वैधानिक संशोधनों के लिए मसौदा तैयार करना, एक साथ चुनाव कराने के लिए संभावित कार्ययोजना तैयार करना, पक्षकारों के साथ बातचीत के लिए योजना बनाना और अन्य जानकारियां जुटाना शामिल होगा।
नीति आयोग ने इन सिफारिशों का अध्ययन करने और इस संबंध में मार्च 2018 की ‘समय सीमा’ तय करने के लिए निर्वाचन आयोग को नोडल एजेंसी बनाया है। आयोग की सिफारिशें इसलिए भी महत्वपूर्ण हो हैं क्योंकि पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दोनों ही ने लोकसभा तथा विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराने का समर्थन किया है। इस वर्ष गणतंत्र दिवस समारोह की पूर्व संध्या पर अपने भाषण में मुखर्जी ने लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ कराने की बात कही थी।
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि चुनावी सुधार पर सकारात्मक चर्चा का समय आ गया है। उन्होंने कहा कि हमें दशकों पुराने उस समय में लौट जाना चाहिए, जब स्वतंत्रता के तुरंत बाद लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते थे। उन्होंने कहा अब निर्वाचन आयोग को राजनीतिक दलों के साथ विचार-विमर्श कर इसे आगे बढ़ाना है।
मोदी ने फरवरी में सुझाव दिया था चुनाव खर्च बचाने के लिए दोनो चुनाव एक साथ कराए जाने चाहिए। पूर्व राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर पर हुई चर्चा का लोकसभा में जवाब देते हुए उन्होंने कहा था कि सन 2009 में लोकसभा चुनाव पर 1,100 करोड़ रूपये खर्च हुए। इसके बाद सन 2014 में यह खर्च बढ़ कर 4000 करोड़ रूपये हो गया। उन्होंने कहा था कि बड़ी संख्या में शिक्षकों सहित एक करोड़ से अधिक सरकारी कर्मचारी चुनाव प्रक्रिया में शामिल होते हैं। यह सिलसिला जारी रहने पर शिक्षा के क्षेत्र में बहुत नुकसान होता है। उन्होंने दूसरी चुनौतियों को छोड़ कर बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों को चुनाव में लगाना पड़ता है।