मुंबई,हमारे समाज में कई बार ऐसी मिसाल कायम हो जाती हैं जो कि आने वाले समय के लिए लोगों के लिए प्ररेणा बन जाती है। कुछ इसी तरह की मिसाल मुंबई और चेन्नई में बनी। जहां ब्रेन डेड घोषित कर दिए गए दो लोगों ने तीन मरीजों को जीवनदान दिया। अंग दाताओं में से एक के फेफड़े को पुणे से विमान के जरिए चेन्नई के अस्पताल में भेजा गया जबकि उसके दिल को मुंबई भेजा। अस्पताल ने दावा किया कि देश में यह पहली बार है जब दान किए गए फेफड़े को मरीज में प्रतिरोपित करने के लिए इतनी लंबी दूरी तय की गई। पुणे में रुबी हॉल क्लिनिक में 22 वर्षीय एक युवती को ब्रेन डेड घोषित किया गया था। जिसके बाद युवती के पति ने अंग दान की इजाजत दे दी,इसके फौरान बाद डॉक्टरों की टीम ने एक फेफड़े को विमान के जरिए गुरुवार को चेन्नई के ग्लेनिग्लेस ग्लोबल अस्पताल ले जाया गया। अस्पताल के डॉ. संदीप अट्टवार ने कहा, पुणे के रुबी हॉल क्लिनिक में उपयुक्त फेफड़ा उपलब्ध होने का अलर्ट मिलने के बाद हमारी टीम वहां गई और शुरूआती जांच के बाद यह पाया गया कि फेफड़ा मरीज के लिए उपयुक्त है। हमारी मरीज फेफड़े से संबंधित बीमारी से जूझ रही थी, उसका रोग अंतिम चरण में पहुंच चुका था और वह प्रत्यारोपण के लिए दानदाता मिलने का इंतजार कर रही थी।’’
इस बीच, महिला के दिल को गुरुवार को सड़क मार्ग से ग्रीन कोरिडोर बनाकर मुंबई में मुलुंड के फोर्टिस अस्पताल लाया गया। ग्रीन कोरिडोर से 143 किलोमीटर की दूरी एक घंटे 49 मिनट में पूरी की गई। अस्पताल द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार, अंगदान करने वाली युवती का दिल घाटकोपर उपनगर की रहने वाली 24 वर्षीय कॉलेज छात्रा में प्रतिरोपित किया गया। वह दिल की बीमारी से पीड़ित थी और मई से प्रत्यारोपण का इंतजार कर रही थी।इसके साथ ही तीसरे मामले में 45 वर्षीय एक महिला का परिवार भी उसके अंग दान करने के लिए तैयार हो गया है। इस महिला की नवी मुंबई के वाशी स्थित एमजीएम अस्पताल में मौत हो गई थी। अस्पताल ने बताया कि उसके दिल को वाशी से सड़क मार्ग के जरिए 18 किलोमीटर की दूरी मात्र 16 मिनट में तय करके फोर्टिस अस्पताल लाया गया। यह अंग ठाणे के 58 वर्षीय मरीज के शरीर में प्रतिरोपित किया गया। फोर्टिस अस्पताल में हृदय प्रत्यारोपण दल के प्रमुख डॉ. अन्वय मुले ने मृतकों के अंगों को दान करने के बढ़ते आंकड़े को देखते हुए उम्मीद जताई कि इससे वे ऐसे मरीजों की और मदद करने में सक्षम होंगे जिनके अंगों ने काम करना बंद कर दिया है और जिनका रोग अंतिम चरण में पहुंच चुका है।
मानवता की एक अनूठी मिसाल दो लोगों ने दिया तीन लोगों को जीवनदान
